Tuesday, June 26, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 96 क़हर व् ग़ज़ब के डर से सिहरने लगे हैं वह,


96

क़हर व् ग़ज़ब के डर से सिहरने लगे हैं वह,
ख़ुद अपनी बाज़ ए गश्त1 से डरने लगे हैं वह.

गर्दानते2 हैं शोख़ अदाओं को वह गुनाह,
संजीदगी की घास को चरने लगे हैं वह.

रूहानी पेशवा हैं, या ख़ुद मरीज़ ए रूह,
पैदा नहीं हुए थे कि मरने लगे हैं वह.

हैं इस लिए ख़फ़ा, मैं कभी नापता नहीं,
वह काम नेक, जिनको कि करने लगे हैं वह.

ख़ुद अपनी जलवा गाह की पामालियों के बाद,
हर आईने पे रुक के सँवारने लगे हैं वह.

'मुंकिर' ने फेंके टुकड़े, ख़यालों के उनके गिर्द,
माक़ूलियत को पा के, ठहरने लगे हैं वह.

1 प्रति ध्वनी 2 शुमार करना 

،قہر و غضب کے ڈر سے سِہرنے لگے ہیں وہ 
خود اپنی بازِ گشت سے ڈرنے لگے ہیں وہ٠ 

،گردانتے ہیں شوخی کے لمحات کو گناہ 
سنجیدگی کی گھاس کو چرنے لگے ہیں وہ٠ 

،روحانی پیشوه ہیں کہ خود مریضِ روح  
پیدا نہیں ہوئے تھے کہ مرنے لگے ہیں وہ٠ 

،ہیں اس لئے خفا، میں کبھی ناپتا نہیں 
وہ کارِ خیر جِسکو کہ کرنے لگے ہیں وہ٠ 

،خود اپنے جلوہ گاہ کے پامالیوں کے بعد 
ہرآئینے پہ رُک کے سنورنے لگے ہیں وہ٠ 

،منکر نے پھنیکے ٹکڑے خیالوں کے انکے گرد 
معقولیت کو پاکے ٹھہرنے لگے ہے وہ٠ 

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