Thursday, June 14, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 87 जितना बड़ा है क़द तेरा, उतना अज़ीम है


87

जितना बड़ा है क़द तेरा, उतना अज़ीम है,
ऐ पेड़! तू भी राम है, तू भी रहीम है.

ईमान दार लोगों के, ज़ानों पे रख के सर,
बे खटके सो रहे हो, ये अक़्ल ए सलीम है.

तेरह दिलों की धड़कनें, तेरह दलों का बल,
जम्हूर का मरज़ ये, वबाल ए हकीम है.

अलक़ाब में आदाब के, अंबार मत लगा,
बालाए ताक़ कर इसे, क़द्रे ए क़दीम है.

खूं का लिखा हुवा, मेरा दिल में उतार लो,
ये आसमानी कुन, न अलिफ़,लाम, मीम है.

'मुंकिर' खिला रहा है, जो कडुई सी गोलियाँ,
इंकार की दवा है, ये तअसीर नीम है.

***

،جِتنا بڑا ہے قد ترا، اُتنا عظیم ہے 
اے پیڑ تو بھی رام ہے، تو بھی رحیم ہے٠ 

،ایمان دار لوگوں کے، زانو پہ رکھ کے سر 
بے کھٹکے سو رھے ہو، یہ عقلِ سلیم ہے٠ 

،تیرہ دلوں کی دھڑکنیں، تیرہ دلوں کا بل
جمہور کا مرض، یہ وبالِ حکیم ہے٠ 

،القاب میں آداب کے انبار مت لگا  
بالاۓ طاق کر اِسے، قدرِ قدیم ہے٠ 

،خوں سے لکھا ہوا مرا، دل میں اُتار لو 
یہ آئیں بائیں شائیں، نہ الف لام میم ہے٠ 

،منکر کِھلا رہا ہے جو کڑوی سی گولیاں 
اِنکار کی دوا ہے، یہ تاثیرِ نیم ہے٠ 

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