Tuesday, September 2, 2014

Junbishen 235



गज़ल

सुकूने क़ल्ब को, दिल की हसीं परी तो मिले,
तेरे शऊर को, इक हुस्ने दिलबरी तो मिले.

नफ़स नफ़स की बुख़ालत  को ख़त्म कर देंगे,
तेरे निज़ाम में, पाकीज़ा रहबरी तो मिले.

क़िनाअतें तेरी, तुझ को सुकूं भी देदेंगी,
कि तुझ को सब्र, बशकले क़लन्दरी तो मिले.

जेहाद अब नए मअनो को ले के आई है.
तुम्हें ''सवाब ओ ग़नीमत'' से, बे सरी तो मिले.

वहाँ पे ढूँढा तो, बेहतर न कोई बरतर था,
फ़रेब खुर्दाए एहसास ए बरतरी तो मिले.

तू एक रोज़ बदल सकता है ज़माने को,
ख़याल को तेरे 'मुंकिर" सुख़नवरी तो मिले.
*****
*बोखालत=कंजूसी *केनाआतें=संतोष *कलंदरी=मस्त-मौला *''सवाब ओ गनीमत'' =पुण्य एवं लूट-पाट*सुखनवरी=वाक्-

1 comment:

  1. मुजाबीर की ग़ैरत चल बसी सब रोने को आए..,
    तशरीफ़ रखने को फर्शे-पोश कोई दरी तो मिले.....

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