रूबाइयाँ
इन रस्म रवायत की मत बात करो,
तुम जिंसी खुराफात की मत बात करो,
कुछ बातें हैं मायूब नई क़दरों में ,
मज़हब की, धरम ओ ज़ात की मत बात करो.
आओ कि लबे-क़ल्ब, खुदा को ढूंढें,
रूहानी दुकानों में, वबा को ढूंढें,
क्यूं कौम हुई पस्त सफ़े अव्वल की?
मज़हब की पनाहों में ख़ता को ढूंढें.
क्यों सच के मज़ामीन यूँ मल्फूफ़ हुए,
फ़रमान बजनिब हक, मौकूफ हुए,
इंसान लरज़ जाता है गलती करके,
लग्ज़िश के असर में खुदा मौसूफ़ हुए.
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