Monday, September 24, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 69 वक़्त ए अजल


69

वक़्त ए अजल 

ख़ामोश रहो, वक़्त अज़ल छेड़ न जाना,
कुछ पढ़ना पढ़ाना, न कोई रोना रुलाना.
ठहरो, कि मुझे थोड़ा सा माज़ी में है जाना,
बचपन की झलक, आए जवानी का ज़माना.

माँ बाप की शिफ्क़त, वो बुजुर्गों की मुहब्बत,
झगड़े वो बहिन भाई के, वह प्यार की शिद्दत,
दादी की तरफ़दारी, वो नानी की मुरव्वत,
ख़ाला की तबीयत, मियाँ मामूं की रिआयत.

स्कूल के दर्जात में, आला मैं बना था,
आया जो जवाँ साल तो राजा मैं बना था,
इक सुर्ख़ परीज़ाद का दूलह मैं बना था, 
क्या खूब हुवा नाना ओ दादा  मैं बना था.

अब हल्का हुवा जाता हूँ, बीमार बदन से ,
छुट्टी हुई जाती, अदाकार बदन से,
मैं, मैं था बहुत दूर था, जाँदार बदन से,
इस मैं ने बड़े ज़ुल्म किए यार बदन से.

 तोहफ़े में मिली ज़ीस्त की सौग़ात विदा हो,
आलिम हुवा मैं सच का, ख़ुराफ़ात विदा हो,
मातम न तमाशा हो, मेरी ज़ात विदा हो,
संजीदा निगाहों से, ये बारात विदा हो.

ज़ीस्त=ज़िंदगी

وقتِ اجل 

خاموش رہو ، وقتِ اجل چھیڑ نہ جانا
مت پڑھنا پڑھانا ، نہ کوئی رونا رُلانا ٠ 

ٹھہرو کہ مجھے تھوڑا سا ، ماضی میں ہے جانا 
بچپن کی جھلک آے ، جوانی کا زمانہ ٠ 

ماں باپ کی شفقت ، وہ بزرگوں کی محبت 
جھگڑے وہ بہیں بھائی کے ، وہ پیار کی شدّت ٠ 

دادی کی طرف داری ، وہ نانی کی مروّت 
خالہ کی طبع ماں سی ، وہ ماموں کی رعایت ٠ 

اسکول کے درجات میں اعلیٰ میں بنا تھا 
آیا جو جواں سال تو راجہ میں بنا تھا ٠ 

اک سرخ پری زاد کا دولہ میں بنا تھا
کیا خوب ہوا ، نانا و دادا میں بنا تھا ٠ 

اب ہلکا ہوا جاتا ہوں بیمار بدن سے 
چھٹی ملی جاتی ہے اداکار بدن سے ٠ 

تحفہ میں ملی زیست کی سوغات وداع ہو 
درپیش صداقت ہے ، خرافات وداع ہو ٠ 

ماتم نہ تماشہ ہو ، مری ذات وداع ہو 
سنجیدہ نگاہوں سے ، یہ بارات وداع ہو ٠

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