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फ़िक्र ए आक़बत
ये कौन शख़्स है, जो झुर्रियों का पैकर1है,
कमर को दोहरी किए, बर्फ़ जैसी सुब्ह में,
सदा अज़ान की सुन कर, वह जानिब ए मस्जिद,
रुकु सुजूद की हरकत को, भागा जाता है.
वह कोई और नहीं, देखो ग़ौर से उसको,
जो अपने फ़न में था यकता, वह मिस्त्री है वह,
लड़कपने में वह ग़ुरबत की मार खाए है,
जवान था कभी तो गाज़ी ए मशक़्क़त था.
नहीं सुकून ए दरूं2, अब भी उसकी क़िस्मत में,
ख़बर फ़लक की उसे अब सताए रहती है,
बड़ी ही ज़्यादती की है, ये जिसने भी की हो,
नहीफ़3 बूढ़े को, ये फ़िक्र ए आक़बत4 दे के.
1 ढांचा 2 आंतरिक 3 कमज़ोर 4 परलोक
فکرِ عاقبت
،وہ کون شخص ہے ، جو جُھرریوں کا پیکر ہے
،کمر کو دوہری کئے ، برف جیسی صبح میں
،صدا اذان کی سن کر وہ جانب مسجد
رقوع سجود کی حرکت کو بھا گا جاتا ہے ٠
،وہ کوئی اور نہیں ، دیکھو غور سے اُسکو
،جو اپنے فن میں تھا یکتا ، وہ مستری ہے وہ
،لڑکپنے میں وہ غربت کی مار کھاۓ ہے
جوان تھا کبھی تو ، غازئیِ مشققت تھا ٠
،ضعیف ہے تو لائق شریف بیٹے ہیں
،نہیں سکون دروں اب بھی اسکی قسمت میں
،خبر ، دوزخوں کی اُسے ستاۓ اب رہتی ہے
،بڑی ہی زیادتی کی ہے ، یہ جسنے بھی کی ہو
نحیف بوڑھے کو ، یہ فکر عاقبت دیکر٠
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