Saturday, September 22, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 67 ख़लील जिब्रान के नाम


67

ख़लील जिब्रान के नाम 
(गीत) 

बहुत थके ऐ हमराही हम, आओ थोड़ा जी जाएँ,
मैं भी प्यासा, तुम भी प्यासे, इक दूजे को पी जाएँ.

अरमानो के बीज दबे हैं, बर्फ़ीली चट्टानों में,
बरखा रानी हिम पिघला, अंकुर फूटें, हम लहराएँ.

कुछ न बोलें, मुँह न खोलें, शब्दों के परछाईं तले,
चारों नयनों के दर्पन को, सारी छवि दे दी जाएँ.

तेरे तन की झीनी चादर, मेरे देह की तंग क़बा,
आओ दोनों परिधानों को, उतन पुतन के सी जाएँ.

सूरज के किरनों से बंचित, नर्म हवाओं से महरूम,
काया क़ैदी कपड़ों की है,आओ बग़ावत की जाएँ.

نغمۂ دوگانہ 

بہت تھکے ائے ہمراہی ہم ، آؤ تہوڑا جی جائیں 
میں بھی پیاسا تم بھی پیاسے ، چلو یہ دوری پی جائیں ٠ 

ارمانوں کے بیج دبے ہیں ، برفیلی چٹانوں میں 
برکھا اب برفیں پگھلا ، انکور پھوٹیں، ہم لہرا یں ٠ 

کچھ نہ بولیں ، لب نہ کھولیں ، شبدوں کے پرچھائیں تلے 
چاروں نینوں کے درپن کو، ساری چھوی دے دی جائیں ٠ 

تیرے تن کی جھینی چادر ، میرے دیہ کی تنگ قبا 
آؤ دونوں پریدھانوں کو ، اتن پتن، اک کی جائیں ٠ 

سورج کے کرنوں سے بنچت ، نرم ہواؤں سے محروم 
کایا قیدی کپڑوں کی ہیں ، آؤ بغاوت کی جائیں ٠ 

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