Sunday, September 2, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 47 तीरें



47

तीरें 

तेज़ तर तीर की तरह तुम हो, 
नसलो! तुम को निशाना पाना है.
हम हैं बूढे कमान की मानिंद, 
बोलो कितना हमें झुकाना है?
***
सुल्हा कर लूँ कि ऐ अदू तुझ से, 
मैं ने तदबीर ही बदल डाली,
तेरे जैसा ही क्यूं न बन जाऊं, 
अपने जैसा ही क्यों बनाना है.
***
रोज़े रौशन को छीन लेती है, 
तू कि ऐ गर्दिशे ज़मीं हम से,
हम हैं सूरज के वंशजों से मगर, 
सर पे तारीक2 ये ख़ज़ाना है.
***
कौड़ी कौड़ी बचा के रक्खा है, 
तिनका तिनका सजा के रक्खा है,
गीता संदेश कुछ इशारा कर, 
हम ने जोड़ा है किस को पाना है.
***
बारी बारी से सोते जगते हैं, 
मेरे कांधों पे दो फ़रिश्ते ये,
हम सवारी गमो खुशी के हैं, 
रोते हँसते नजात पाना है.
***
आप के पास भी अन्दाज़ा है, 
है हमारे भी पास तख़मीना,
आप ने माना एक वाहिद को, 
हम ने सत्तर करोर माना है.
***
तू है क़ायम फ़क़त गवाही पर, 
सदियाँ गुज़रीं गवाह गुज़रे हुए,
हिचकिचाहट है इल्म नव3 को अब, 
तुझ को नुक्तों पे आज़माना है.
***
तेरे एह्काम4 की करूँ तामील, 
फ़ायदे कुछ न चाहिए मुझ को,
आसमानों से झाँक कर तुझ को,
सिर्फ़ इक बार मुस्कुराना है.

१-दुश्मन २-अँधेरा ३-नई शिक्षा ४-आज्ञा

تیرں 

،تیز تر تیر کی طرح تم ہو 
،نسلو ! تم کو نشانہ پانا ہے
،ہم ہیں بوڑھے کمان کی مانند
بولو ، کِتنا تمہیں جُھکنا ہے ٠
*
،صلح کر لوں ، کہ ائے عدو تُجھ سے 
،میں نے تدبیر ہی بدل ڈالی 
،تیرے جیسا ہی کیوں نہ بن جاؤں 
اپنے جیسا ہی کیوں بنانا ہے ٠
*
،روزِ روشن کو چھین لیتی ہے 
،تو کہ ائے ، گردشِ زمیں مجھ سے 
،ہم تو سورج کے قبلائی ہیں 
سر پہ اندھیر کا کیوں خزانہ ہے ٠
*
،کوڑی کوڑی بچا کے رکھا ہے
،تِنکا تِنکا سجا کے رکھا ہے 
،گیتا سندیش تو اِشارہ دے 
ہمنے جوڑا ہے ، کِسکو پانا ہے ٠
*
،باری باری سے سوتے جگتے ہیں
،میرے کا ندھوں پہ دو فرشتے یہ 
،ہم سواری غم و خوشی کے ہیں 
روتے ہنستے نجات پانا ہے ٠ 
 *
،آپ کے پاس بھی اندازہ ہے 
،ہے  ہمارے بھی پاس تخمینہ 
،آپ نے مانا ایک واحد کو 
ہم نے ستتر کروڑ مانا ہے ٠ 
*

،تو ہے قائم فقط گواہی پر 
،صدیوں گزری گواہ گزرے ہوئے 
،ہچکچاہٹ ہے علم نو کو اب 
تُجھکو نُکتوں پہ آزمانا ہے ٠
*
،تیرے احکام کی کروں تعمیل 
،فائدہ کچھ نہ چاہئے مجھ کو 
،آسمانوں سے جانک کر تُجھ کو
صِرف اک بار مُسکرانا ہے ٠ 

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