Sunday, September 30, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 16-18


16

फिर धर्म के पाखण्ड पे भारत है रवाँ,
खो दे न तवानाई व्  तरक़्क़ी ये जवाँ,
बढ़ चढ़ के दिमागों पे है मज़हब की अफ़ीम,
हुब्बुल वतनी का जज़्बा है कहाँ?

پھر دھرم کے پاکھنڈ پہ ، بھارت ہے رواں 
کھو دے نہ توانائی و ترققی یہ جواں 
بڑھ چڑھ کے دماغوں پہ ہے مذہب کی افیم 
حب الوطنی کا جزبہ ہے کہاں ٠

17

हो सकता है ठीक, दमा मिर्गी व् खाज,
बख़्श सकता है जिस्म को रोगों का राज,
तरबियतों की घुट्टी पिए है माहौल, 
मुश्किल है बहुत मुंकिर ज़ेहनों का इलाज.

ہو سکتا ہے ٹھیک ، دَما مِرگی و کھاج 
بَخش سکتا ہے جِسم کو روگوں کا راج
تربیّتوں کی گُھٹَی پیے ہے ماحول 
مشکل ہے بہت منکر ذہنوں کا عِلاج ٠ 

18

इक उम्र पे रुक जाए, जूँ बढ़ना क़द का,
कुछ लोगों में हश्र है, इसी तरह ख़िरद का,
मुंजमिद ख़िरद को ढोते हैं सारी उम्र,
रहता है सदा पास मुसल्लत हद का.

اِک عمر میں روک جاۓ جوں بڑھنا قد کا 
کچھ لوگوں میں حشر ہے ، اسی طرح خِرد کا 
منجمِد خِرد کو ڈھوتے ہیں ساری عمر 
رہتا ہے صدا پاس مسلّط حد کا ٠ 

Saturday, September 29, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 13-15


13
इन्सान के मानिंद हुवा उसका मिज़ाज , 
टेक्सों के एवज़ में ही चले राज व् काज,
है दाद-व् -सितद में वह बहुत ही माहिर,
देता है अगर मुक्ति तो लेता है ख़िराज.

اِنسان کے مانند ہُوا اُسکا مزاج 
ٹیکسوں کے عوض میں ہی چلے راج و کاج 
ہے داد و سِتد میں وہ بڑا ہی ماہر 
دیتا ہے گر نجات ، لیتا ہے خراج 

14

अल्फाज़ के मीनारों में क्या रख्खा है, 
सासों भरे गुब्बारों में क्या रख्खा है,
इस हाल को देखो कि कहाँ है मिल्लत,
माज़ी के इन आसारों में क्या रख्खा है.
الفاظ میناروں میں کیا رکّھا ہے 
ساسوں بھرے غُباروں میں کیا رکّھا ہے
اس حال میں دیکھو کہ کہاں ہے اُمّت 
ماضی کے ان آساروں میں کیا رکّھا ہے 

15

आज़ादी है सभी को कोई कुछ माने,
अजदाद* के जोगी को पयम्बर जाने,
या अपने कोई एक खुदा को गढ़ ले,
गुस्ताख़ी है औरों को लगे समझाने.
*पूर्वज 

آزادی سبھی کو ہے ، کوئی کچھ مانے
اجداد کے جوگی کو پیمبر جانے
یا اپنے کوئی ایک خدا کو گڑھ لے 
گستاخی ہے آوروں کو لگے سمجھنے ٠ 

Friday, September 28, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 10-12


10

हैवान हुवा क्यूँ न भला, तख़्ता ए मश्क़,
इंसान का होना है, रज़ाए अहमक़,
शैतान कराता फिरे, इंसाँ से गुनाह,
अल्लाह कराता रहे, उट्ठक बैठक.

तख्ता ए मश्क़=ब्लेक बोर्ड,रज़ाए =स्वीकृति 

حیوان ہوا کیوں نہ بھلا تختہء مشق  
اِنسان کا ہونا ہے رضاء احمق 
شیطان کرا تا پِھرے ، انساں سے گناہ 
الله کرا تا رہے ، اُٹھک بیٹھک ٠ 

11

साइंस की सदाक़त पे यक़ीं रखता हूँ,
अफ़कार ओ सरोकार का दीं रखता हूँ, 
सच की देवी का मैं पुजारी ठहरा, 
बस दिल में यही माहे-जबीं रखता हूँ.

سائنس کی صداقت پہ یقیں رکھتا ہوں 

افکار و سروکار کا دیں رکھتا ہوں 
سچ کی دیوی کا میں پُجاری ٹھہرا 
بس دل میں یہی ماہِ جبیں رکھتا ہوں 
12

हमदर्द भी होते, वह दवा भी होते,
वह मेरे मददगार नुमा भी होते,
लाज़िम था कि होता न मैं, उनसे बढ़ कर
वह मुझ पे हँसा, करते फ़िदा भी होते

ہمدرد بھی ہوتے ، وہ دوا بھی ہوتے 
وہ میرے مدد گار، نُما بھی ہوتے 
لازم تھا کہ ہوتا نہ میں ، اُن سے بڑھ کر
وہ مجھ پہ ہنسا کرتے ، فدا بھی ہوتے ٠ 

Thursday, September 27, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 7-9


7

मज़हब है रहे गुम पे, दिशा हीन धरम हैं,
आपस में दया भाव नहीं है, न करम हैं,
तलवार, धनुष बाण उठाए दोनों,
मानव के लिए पीड़ा हैं, इंसान के ग़म हैं.

مذہب ہے رہِ گُم پہ ، دِشا ہین دھرم 
آپس میں دَیا بھاؤ نہیں ہے ، نہ کرم 
تلوار ، دھنُش بان ، اُٹھاۓ دونو 
مانَو کے لئے پیڑا ہیں ، اِنسان کے غم ٠ 

8
सच्चे को बसद शान ही, बन्ने न दिया
बस साहिबे ईमान ही, बन्ने न दिया
पैदा होते ही कानों में, फूँक दिया झूट
इंसान को इंसान ही, बन्ने न दिया.
बसद=१००%

بچّے کو بصد شان ہی بننے نہ دیا 
بس صاحب ایمان ہی بننے نہ دیا 
پیدا ہوتے ہی کان میں پھونک دیا جھوٹ 
اِنسان کو اِنسان ہی بننے نہ دیا 

9

ये लाडले, प्यारे, ये दुलारे मज़हब,
धरती पे घनी रात हैं, सारे मज़हब,
मंसूर हों, तबरेज़ हों, या फिर सरमद,
इन्सान को हर हाल में, मारे मज़हब.

یہ لاڈلے پیارے ، یہ دُلارے مذہب 
دھرتی پہ گھنے رات ہیں سارے مذہب 
منصور ہوں ، تبریز ہوں یا پھر سرمد 
انسان کو ہر حال میں مارے مذہب 

Wednesday, September 26, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 4-6


4
सद बुद्धि दे उसको तू , निराले भगवान,
अपना ही किया करता है, कौदम नुक़सान,
नफ़रत है उसे, सारे मुसलमानों से,
पक्का हिन्दू है, वह कच्चा इंसान.

कौदम=मूर्ख

سد بُددھی دے اُسکو ، تو نِرالے بھگوان 
اپنا ہی کیا کرتا ہے کودم نقصان 
نفرت ہے اُسے ، سارے مسلمانوں سے 
پکّا ہندو ہے ، وہ کچّا انسان ٠

5

इंसान नहीफ़ों को, दवा देते है,
हैवान नहीफ़ों को, मिटा देते हैं,
हैं कौन समझदार, यहाँ दोनों में?
कुछ देर ठहर जाओ, बता देते हैं.

नहीफों =कमजोरों

اِنسان نحیفوں کو دوا دیتے ہیں 
حیوان نحیفوں کو مِٹا دیتے ہیں 
ہے کون سمجھدار یہاں دونوں میں ؟
کُچھ دیر ٹھہر جاؤ ، بتا دیتے ہیں ٠ 

6

काफ़िर है न मोमिन, न कोई शैताँ  है,
हर रूप में, हर रंग में, बस इंसाँ है
मज़हब ने, धर्म ने, किया छीछा लेदर
बेहतर है मुअतक़िद* नहीं जो हैवाँ  है.

*आस्थावान

کافر ہے ، نہ مسلم ، نہ کوئی شیطاں ہے 
ہر روپ میں ہر رنگ میں ، بس انساں ہے
مذہب نے ، دھرم نے ، کیا چھیچھ لیدر 
بہتر ہے ، معتقد نہیں جو حیواں ہے ٠ 

Tuesday, September 25, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 1 -3


रुबाइयात 


1
तुम भी अगर जो सोचो, विचारो तो सुनो,
अबहाम१ के शैतान को, मारो तो सुनो,
कुछ लोग बनाते हैं, तुम्हें अपना सा,
ख़ुद अपना सा बनना है, गर यारो तो सुनो.
१-अन्धविश्वास
تم بھی اگر جو سوچو ، وچارو تو سنو
ابہام کے شیطان کو مارو تو سنو
کچھ لوگ بناتے ہیں تمہیں اپنا سا 
خود اپنا سا بننا ہے، جو یارو تو سنو٠
2
'मुंकिर' की ख़ुशी जन्नत, तौबा तौबा,
दोज़ख़ से डरे ग़ैरत, तौबा तौबा,
बुत और ख़ुदाओं से तअल्लुक़ उसका,
लाहौल वला, क़ूवत, तौबा तौबा.
منکر کی خوشی جنّت، توبہ توبہ  
دوزخ سے ڈرے غیرت ، توبہ توبہ  
بُت اور خداؤں سے تعلّق اُسکا  
لا حول ولا قووتھ ، توبہ توبہ ٠ 
3
अल्लाह ने बनाया है, जहानों सामाँ ,
मशकूक ख़िरद1 है, कहूं हाँ या नाँ,
इक बात यक़ीनन है, सुनो या न सुनो,
अल्लाह को बनाए है, क़यास इंसाँ.
क़यास =अनुमान 
الله نے بنایا ہے جہان و ساماں 
مشکوک خرد ہے کہ کہوں ہاں یا نا 
اک بات یقیناً ہے سُنو یا نہ سُنو 
الله کو بناۓ ہے قیاسِ انساں ٠ 

Monday, September 24, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 69 वक़्त ए अजल


69

वक़्त ए अजल 

ख़ामोश रहो, वक़्त अज़ल छेड़ न जाना,
कुछ पढ़ना पढ़ाना, न कोई रोना रुलाना.
ठहरो, कि मुझे थोड़ा सा माज़ी में है जाना,
बचपन की झलक, आए जवानी का ज़माना.

माँ बाप की शिफ्क़त, वो बुजुर्गों की मुहब्बत,
झगड़े वो बहिन भाई के, वह प्यार की शिद्दत,
दादी की तरफ़दारी, वो नानी की मुरव्वत,
ख़ाला की तबीयत, मियाँ मामूं की रिआयत.

स्कूल के दर्जात में, आला मैं बना था,
आया जो जवाँ साल तो राजा मैं बना था,
इक सुर्ख़ परीज़ाद का दूलह मैं बना था, 
क्या खूब हुवा नाना ओ दादा  मैं बना था.

अब हल्का हुवा जाता हूँ, बीमार बदन से ,
छुट्टी हुई जाती, अदाकार बदन से,
मैं, मैं था बहुत दूर था, जाँदार बदन से,
इस मैं ने बड़े ज़ुल्म किए यार बदन से.

 तोहफ़े में मिली ज़ीस्त की सौग़ात विदा हो,
आलिम हुवा मैं सच का, ख़ुराफ़ात विदा हो,
मातम न तमाशा हो, मेरी ज़ात विदा हो,
संजीदा निगाहों से, ये बारात विदा हो.

ज़ीस्त=ज़िंदगी

وقتِ اجل 

خاموش رہو ، وقتِ اجل چھیڑ نہ جانا
مت پڑھنا پڑھانا ، نہ کوئی رونا رُلانا ٠ 

ٹھہرو کہ مجھے تھوڑا سا ، ماضی میں ہے جانا 
بچپن کی جھلک آے ، جوانی کا زمانہ ٠ 

ماں باپ کی شفقت ، وہ بزرگوں کی محبت 
جھگڑے وہ بہیں بھائی کے ، وہ پیار کی شدّت ٠ 

دادی کی طرف داری ، وہ نانی کی مروّت 
خالہ کی طبع ماں سی ، وہ ماموں کی رعایت ٠ 

اسکول کے درجات میں اعلیٰ میں بنا تھا 
آیا جو جواں سال تو راجہ میں بنا تھا ٠ 

اک سرخ پری زاد کا دولہ میں بنا تھا
کیا خوب ہوا ، نانا و دادا میں بنا تھا ٠ 

اب ہلکا ہوا جاتا ہوں بیمار بدن سے 
چھٹی ملی جاتی ہے اداکار بدن سے ٠ 

تحفہ میں ملی زیست کی سوغات وداع ہو 
درپیش صداقت ہے ، خرافات وداع ہو ٠ 

ماتم نہ تماشہ ہو ، مری ذات وداع ہو 
سنجیدہ نگاہوں سے ، یہ بارات وداع ہو ٠

Sunday, September 23, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 68 ख़ुदकुशी


68

ख़ुदकुशी 

ख़ुद कुशी जुर्म नहीं, उम्र के क़ैदी हैं सभी,
मुझको आती है हँसी, आलम ए हैरत में कभी,
रग पे, धड़कन पे, हुकूमत की इजारा दारी,
अपनी सासों में भी, गोया है दख़्ल  सरकारी.

गर किसी का कोई एक चाहने वाला भी न हो,
शर्म व ग़ैरत का, अगर एक नवाला भी न हो,
दर्द ए अमराज़1 से जीने की सज़ा मिलती हो,
एक लाचार को रहमों की, बला मिलती हो,

बुज़दिली ये है कि, मर मर के जिए जाते हैं,
है तो ज़िल्लत की, मगर सांस लिए जाते हैं.
मरना आसान नहीं है, ये बहुत मुश्किल है,
वक़्त माक़ूल2 पर मर ले, वह बशर कामिल है. 

जिंदगानी पे अगर वाक़ई दिल से रो दे,
जीना चाहें तो जिएँ, वर्ना ज़िन्दगी खो दे.
कोढ़ी मफ़लूज3 व् अपाहिज को चलो समझाएँ ,
ख़ुद कुशी करने की तरकीब, उन्हें बतलाएँ. 

उनको बतलाएँ, ज़मीं हड़ के उन्हें सहती है,
ज़िन्दा लाशों से ज़मीं, पाक नहीं रहती है.

1 रोग 2 उचित 3 सुरक्षित   

خود کُشی 

خود کُشی جُرم نہیں ، عُمر کے قیدی ہیں سبھی 
مجھکو آتی ہے ہنسی ، عالمِ حیرت میں کبھی 
رگ پہ ، دھڑکن پہ ، حُکومت کی اِجارہ داری 
اپنی ساسوں پہ بھی ، گویہ ہے دخل سرکاری ٠ 

گر کسی کا کوئی ، اِک چاہنے والا ہی نہ ہو 
شرم و غیرت کا اگر ، ایک نوالہ بھی نہ ہو 
درد اِمراض سے ، جینے کی سزا ملتی ہو 
ایک لاچار کو ، رحموں کی بلا ملتی ہو 
بزدلی یہ ہے کہ ، مر مر کے جے جاتے ہیں
ہے تو ذلّت کی ، مگر سانس لئے جاتے ہیں ٠ 

مرنا آسان نہیں ہے ، یہ بڑا مشکل ہے 
وقتِ معقول پہ مر لے ، وہ بشر کامل ہے ٠ 

زندگانی پہ اگر واقعی ، دل سے رو دے 
پھر تو بہتر ہے، بارِ گراں ہستی کھو دے ٠ 

کوڑھی ، مفلوج و اپاہج کو ، چلو سمجھا ئیں 
خود کشی کرنے کی ، ترکیب اِنھیں بتلائیں 
اِنکو سمجھا ئیں ، زمیں ہڑ کے اِنھیں سہتی ہے 
زندہ لاشوں سے ، زمیں پاک نہیں رہتی ہے ٠ 

Saturday, September 22, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 67 ख़लील जिब्रान के नाम


67

ख़लील जिब्रान के नाम 
(गीत) 

बहुत थके ऐ हमराही हम, आओ थोड़ा जी जाएँ,
मैं भी प्यासा, तुम भी प्यासे, इक दूजे को पी जाएँ.

अरमानो के बीज दबे हैं, बर्फ़ीली चट्टानों में,
बरखा रानी हिम पिघला, अंकुर फूटें, हम लहराएँ.

कुछ न बोलें, मुँह न खोलें, शब्दों के परछाईं तले,
चारों नयनों के दर्पन को, सारी छवि दे दी जाएँ.

तेरे तन की झीनी चादर, मेरे देह की तंग क़बा,
आओ दोनों परिधानों को, उतन पुतन के सी जाएँ.

सूरज के किरनों से बंचित, नर्म हवाओं से महरूम,
काया क़ैदी कपड़ों की है,आओ बग़ावत की जाएँ.

نغمۂ دوگانہ 

بہت تھکے ائے ہمراہی ہم ، آؤ تہوڑا جی جائیں 
میں بھی پیاسا تم بھی پیاسے ، چلو یہ دوری پی جائیں ٠ 

ارمانوں کے بیج دبے ہیں ، برفیلی چٹانوں میں 
برکھا اب برفیں پگھلا ، انکور پھوٹیں، ہم لہرا یں ٠ 

کچھ نہ بولیں ، لب نہ کھولیں ، شبدوں کے پرچھائیں تلے 
چاروں نینوں کے درپن کو، ساری چھوی دے دی جائیں ٠ 

تیرے تن کی جھینی چادر ، میرے دیہ کی تنگ قبا 
آؤ دونوں پریدھانوں کو ، اتن پتن، اک کی جائیں ٠ 

سورج کے کرنوں سے بنچت ، نرم ہواؤں سے محروم 
کایا قیدی کپڑوں کی ہیں ، آؤ بغاوت کی جائیں ٠ 

Friday, September 21, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 66 मुन्सिफ़ हाज़िर हो


66

मुन्सिफ़ हाज़िर हो 

ऐ अदालत तेरे आँखों में हैं क़ातिल के नुक़ूश,
और तेरे सर पे, बड़ी बेटी की शादी तय है,
इक बड़ी दौरी को भरना है, तुझे वर है सही,
अस्मत ए अद्ल1 को बेचेगा, तू रंडी की तरह.

मरने वाले का मैं वालिद, तू है बेटी का पिता,
हार जाऊंगा मुक़दमा मैं, बड़ा मुफ़लिस हूँ.

मशविरा है ये मेरा, छोड़ो अदालत के तवाफ़2,
सब्र कर डालो, मुक़दमे का न चक्कर पालो,
बख्श दें मुद्दई हर छोटे गुनह गारों को,
और बड़े से तो ये बेहतर है, कि ख़ुद ही निपटें,
कल की बातें हैं अदालत, ये गवाही, ये वकील,
आज पैसे का खिलौना है ये ज़हरीला निजाम3.

नहीं इंसाफ यहाँ, है तो तबाही है यहाँ,
यह बना होगा कभी सिद्क़4 की मीनारों पर,
आज यह सब से बड़ा रिशवतों का अड्डा है.
तुम ज़मीरों में बसे हो तो, बहादर भी बनो,
वरना बुज़दिल की तरह जा के ख़ुद कुशी कर लो .

1 न्याय की मर्यादा 2 परिक्रमा 3 व्योवस्था 4 सत्य 

مُنصف حاضر ہو 

،ائے عدالت تری آنکھوں میں ہیں ، قاتل کےنقوش 
،اور ترے سر پہ بڑی بیٹی کی شادی طے ہے 
،عظمتِ عدل کو بیچے گا تو رنڈی کی طرح 
،مرنے والے کا میں والد ہوں ، تو بیٹی کا پتا 
ہار جاؤنگا مُقدمہ ، کہ بہت مُفلس ہوں ٠ 
،مشورہ ہے یہ مرا ، چھوڑو عدالت کا طواف 
،صبر کر ڈالو مُقدمے کا نہ چکّر پالو 
،بخش دیں مُدعی ہر چھوٹے گُنہگاروں کو 
اور بڑوں سے تو یہ بہتر ہے ، کہ خود ہی نپٹیں ٠ 
،کل کی باتیں ہیں عدالت ، یہ گواہی ، یہ وکیل 
،آج پیسوں کا کھلونہ ہے، یہ بوسیدہ نظام 
،یہ بنا ہوگا کبھی صِدق کے میناروں پر 
آج یہ سب سے بڑا رِشوتوں کا ا ڈ ڈا ہے ٠ 
،تم ضمیروں میں بسے ہو تو بہادر بھی بنو 
مت غُلامانہ جیو بڑھ کے سنوارو یہ نظام ٠ 

Thursday, September 20, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 65 शकर पारे


65 

शकर पारे 

आओ कुछ सच्ची इबारत पढ़ लें,
सतः पर तैरें न, गहरे डूबें,
दिल में गूंगे से पड़े, दिल बोलें,
कानों की बहरी समाअत1जागें.

जुन्बिशें लब की खुली आँख चुनें,
हम दलीलों के फटे होंट सिएँ,
तन में बैठा है नया मन, ढूँढें,
जश्त2 इक लेके, बुलंदी को छुएँ.

दिल अगर चाहे तो नाचें गाएं,
इन से उनसे न कभी शर्माएं,
साथ पागल के कभी बौराएँ,
खोखले पन को ख़ला भर पाएं.

हम अकेले हैं कितने खुद देखें,
फिर ज़माने से अपना हिस्सा लें,
ना मुनासिब है कि छीने झपटें,
बाक़ी औरों के लिए रहने दें.

1 श्रवण शक्ति 2 छलांग 

شکر پارے 

آؤ کچھ سچی عبارت دیکھیں 
سطح پر تیریں نہ گہرے ڈوبیں 
دل میں خاموشی پئے دل بولیں 
کانوں میں سوئی ہوئی حس جاگیں ٠

جنبش لب کو ، کھلی آنکھ چنیں 
ہم دلیلوں کے پھٹے ہونٹ سیں 
تن میں بیٹھا ہے بھلا من ، ڈھونڈھیں 
جست اک لیکے ، بلندی کو چھیں ٠

دل اگر چاہے تو ، ناچیں گاہیں 
ان سے ان سے نہ کبھی شرما یں 
ساتھ پاگل کے کبھی بورایں 
کھوکھلے پن کی خلا بھر جایں ٠

ہم اکیلے ہیں اسے خود سمجھیں 
اپنے حق بھر کو ہی تسلیم کریں 
نہ مناسب ہے کہ چھینیں جھپٹیں 
باقی اوروں کے لئے رہنے دن ٠

آؤ کچھ سچی عبارت دیکھیں 
سطح پر تیریں نہ گہرے ڈوبن ٠ 

Wednesday, September 19, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 64 फ़िक्र ए आक़बत


64

फ़िक्र ए आक़बत  

ये कौन शख़्स है, जो झुर्रियों का पैकर1है,
कमर को दोहरी किए, बर्फ़ जैसी सुब्ह में,
सदा अज़ान की सुन कर, वह जानिब ए मस्जिद,
रुकु सुजूद की हरकत को, भागा जाता है.

वह कोई और नहीं, देखो ग़ौर से उसको,
जो अपने फ़न में था यकता, वह मिस्त्री है वह,
लड़कपने में वह ग़ुरबत की मार खाए है,
जवान था कभी तो गाज़ी ए मशक़्क़त था.

नहीं सुकून ए दरूं2, अब भी उसकी क़िस्मत में,
ख़बर फ़लक  की उसे अब सताए रहती है,
बड़ी ही ज़्यादती की है, ये जिसने भी की हो,
नहीफ़3 बूढ़े को, ये फ़िक्र ए आक़बत4 दे के. 

1 ढांचा 2 आंतरिक 3 कमज़ोर 4 परलोक 


فکرِ عاقبت

،وہ کون شخص ہے ، جو جُھرریوں کا پیکر ہے 
،کمر کو دوہری کئے ، برف جیسی صبح میں 
،صدا اذان کی سن کر وہ جانب مسجد
رقوع سجود کی حرکت کو بھا گا جاتا ہے ٠

،وہ کوئی اور نہیں ، دیکھو غور سے اُسکو 
،جو اپنے فن میں تھا یکتا ، وہ مستری ہے وہ 
،لڑکپنے میں وہ غربت کی مار کھاۓ ہے 
جوان تھا کبھی تو ، غازئیِ مشققت تھا ٠

،ضعیف ہے تو لائق شریف بیٹے ہیں 
،نہیں سکون دروں اب بھی اسکی قسمت میں 
،خبر ، دوزخوں کی اُسے ستاۓ اب رہتی ہے 
،بڑی ہی زیادتی کی ہے ، یہ جسنے بھی کی ہو 
نحیف بوڑھے کو ، یہ فکر عاقبت دیکر٠  

Tuesday, September 18, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 63 ग़ुबार


63

ग़ुबार 

कुछ फ़ी सदी तरक्क़ी, हिदोस्तां की यारों,
धर्मों ने खा लिया है, मज़हब ने पी लिया है.
लम्हे मशक़्क़तों के, बर्बाद हो रहे हैं,
सजदों में जा रहे हैं, घन्टे बजा रहे हैं. 

ज्योतिष पे न्यूँ डाले, हर झूट को संभाले,
तंज़ीमें बन रही हैं, ज़हरें उगल रही हैं.
टी वी के चैनलों पर ये राम भरोसे हैं,
विज्ञानी थालियों में, अज्ञान परोसे हैं.

बनते जगत गुरु हैं, दुन्या में ज़र्द रू हैं. 
इनके शरण न जाओ, पहचान अपनी पाओ.
धर्मो का विष त्यागो, धर्मो से दूर भागो.
सच के गगन पे छाओ , विज्ञान को निभाओ.

धरती के कुछ नियम हैं, ये धर्म बस भरम हैं.
ख़ुद अपने में बशर है, सब ख़ुद पे मुनहसर है .
मज़हब है एक साज़िश, समझो मेरी गुज़ारिश,
बाहर से ये भले हैं, अन्दर से खोखले हैं.

धर्मी मेरे अमल हों, सच्चाई पर अटल हों,
लालच न फ़ायदे हों, डर हो न दबदबे हों.
हम ऐसे मुस्कुराएँ, मुजरिम न ख़ुद को पाएँ 
हर चेहरे पर ख़ुशी हो, आबाद ज़िन्दगी हो.

गर अपना देश भारत, धर्मों से पाक होता,
पश्चिम हमारे आगे, जूती की ख़ाक होता.
होती गराँ न रोटी, छत और ये लंगोटी.
मय नोश हम भी होते, बा होश हम भी होते.

शीशे के घर में रहते, ये मुफ़लिसी न सहते.
तालीम होती लाज़िम, हम होते सब मुलाज़िम.
घर बिजली मुफ़्त होती, हम को भी कार ढोती.
पाखंड न राज करता, सच सजता और संवरता.

दहकाँ शबाब पाता, मज़दूर गुनगुनाता,
जोगी ये नर न बनता, मज़मून पर निखरता,
न गुंडा राज होता, सच्चे पे ताज होता.
धर्मो ने मार डाला, मज़हब ने डाका डाला.

ऐ साकिनान भारत, थोड़ी सी ही जिसारत,
है वक़्त जाग जाओ, मत झूट को निभाओ,
अमरीका मुन्तज़िर है, योरोप को आस फिर है,
तुम पूरे सो जो जाओ, बस धर्म को बचाओ,
वह तुम को जाम कर दें, फिर से ग़ुलाम कर दें.

غبار  

کچھ فی صدی تراققی ، ہندوستاں ہی یارو 
دھرموں نے کھا لیا ہے ، مذہب نے پی لیا ہے ٠ 
لمحے مشققتوں کے برباد ہو رہے ہیں 
سجدوں لوگ غلطاں ، گھنٹے بجا کے مستاں ٠ 
جیوتش پہ نیوں ڈالے ، ہر جھوٹ کو سنبھالے 
دھرموں کا آگمان ہے ، آبھاس کا ندھن ہے ٠ 
ٹی وی کے چینلوں پر ، بھگوان کے بھروسے 
وگگیانی تھالیوں میں ، اگگیاں کو پر وسے ٠ 
کردار کچھ نہیں ہے ، معیار کچھ نہیں ہے 
بنتے جگت گرو ہیں ، دنیا میں زرد رو ہیں ٠ 
اب نہ کبیر ہوگا ، کوئی نہ ویر ہوگا 
مذہب ہے ایک سازش ، انسانیت پہ خارش٠ 
دھرتی کے کچھ نیم ہے ، یہ دھرمباس بھرم ہیں٠ 
*
خود اپنے پہ بشر ہے ، سب خود پہ منحصر ہے 
دین و دھرم نہ ہوتے ، پھوٹے کرم نہ ہوتے٠ 
انکے شرن نہ جاؤ ، پہچان اپنی پاؤ 
دھرموں زہر تیاگو ، مذہب سے دور بھا گو٠ 
دھرمی میرے عمل ہوں ، سچائی پر اٹل ہوں 
لالچ نہ فائدے ہوں ، ڈر ہوں نہ دبدبے ہوں٠ 
ہم ایسے مسکرایں ، مجرم نہ خود کو پایں٠ 
گر اپنا دیش بھارت ، دھرموں سے پاک ہوتا 
پشچم ہمارے آگے جوتی کی خاک ہوتا٠ 
ہوتی نہ دور روٹی ، دکھتی نہ یہ لنگوٹی 
اے سی میں ہم بھی سوتے ، سب کے فلیٹ ہوتے٠ 
مے نوش ہم بھی ہوتے ، با ہوش ہم بھی ہوتے 
شیشوں کے گھر میں رہتے ، یہ مفلسی نہ سہتے٠ 
یہ بجلی مفت ہوتی ، ہم کو بھی کار ڈ ھوتی 
تعلیم ہوتی لازم ، سب ہوتے پھر ملازم٠ 

پاکھنڈ نہ راج کرتا ، سچ سجتا اور سنورتا 
دہقاں شباب پاتا ، مزدور گنگناتا 
کپٹی کوٹل نہ ہوتے ، یہ تنگ دل نہ ہوتے 
نہ گنڈا راج ہوتا ، ان پر نہ تاج ہوتا ٠ 
بے داغ چن کے آتے ، سچی خراج پاتے٠ 
اے ساکنان بھارت ، تھوڑی سی ہو جسارت 
ہے وقت جاگ جاؤ ، مت جھوٹ کو نبھاؤ٠ 
امریکہ منتظر ہے ، یوروپ کو آ س پھر ہے 
تم پورے سو جو جاؤ ، بس دھرم کو بچاؤ 
وہ تم کو جام کر دیں ، پھر سے غلام کر دن ٠ 

Monday, September 17, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 62


62

अपना सूरज

अपने सूरज में गर समाना है,
और कुछ कर के ही दिखाना है,

अपनी हस्ती को बर् पर रख के,
तर्क-लज़्ज़त का ज़ायका चख के,

अपने माहौल को सुलाते हुए,
अपने मीरास को भुलाते हुए,

अपने साए को नान्घ कर बढ़ जा,
मरहले डाक, मंज़िलें चढ़ जा.

ख़ुद को पहचान एक साज़ है तू ,
आपो दीपो भवः का राज़ है तू.

तू जहाँ है वहां पे कोहरा है,
मुन्तज़िर5 तेरा हुस्ने ज़ोहरा है.

१-बिजली २-स्वाद त्याग ३-धरोहर ४-पडाव ५- प्रतीक्षा में 6- एक सितारा

اپنا سورج

،اپنے سورج میں گر سمانا ہے
،اور دنیا میں جگمگانا ہے
،اپنی ہستی کو برق پر رکھ کر
،ترک لذّت کا ذائقہ چکھ کر،
،اپنے ماحول کو بھُلاتے ہوئے
،اپنی میراث کو سُلاتے ہوئے
،اپنے ساۓ کو نانگھ کر بڑھ جا
،مرحلے ڈانک ، منزلیں چڑھ جا
،خود کو پہچان ایک ساز ہے تو
،" آپو دیپو بھوہ" کا راز ہے تو
،تو جہاں ہے ، وہاں پہ کُہرا ہے
منتظر تیرا حسن زوہرہ ہے ٠ 

Sunday, September 16, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 61 बदबूदार ख़ज़ानें


61

बदबूदार ख़ज़ानें

माज़ी1 का था समंदर, देखा लगा के ग़ोता,
गहराइयों में उसके, ताबूत कुछ पड़े थे,
कहते हैं लोग जिनको, संदूकें अज़मतों2 की,
बेआब जिनके अंदर, रूहानी मोतियाँ थीं.
आओ दिखाएँ तुमको रूहानी अज़मतें कुछ ----

अंधी अक़ीदतें थीं, बोसीदा आस्थाएँ,
भगवान राजा रूपी, शाहान कुछ ख़ुदा वंद,
मुंह बोले कुछ पयम्बर, अवतार कुछ स्वयम्भू ,
ऋषि व् मुनि की खेती, सूखी पडी थी बंजर.

शरणम कटोरा गच्छम, ख़ैरात खा रहे थे.
रूहानियत के ताजिर, नोटें भुना रहे थे.

उर्यानियत5 यहाँ पर देवों की सभ्यता थी,
डाकू भी करके तौबा, पुजवा रहे हैं ख़ुद को,
कितने ही ढलुवा चकनट, मीनारे-फ़लसफ़ा थे.

संदूक्चों में देखा, आडम्बरों के नाटक,
करतब थे शोबदों के, थे क़िज़्ब के करश्में,
कुछ बेसुरी सी तानें, कुछ बेतुके निशाने,
फ़रमान ए आसमानी9, दर् अस्ल हाद्सती10.
आकाश वानिया कुछ, छलती, कपटती घाती.

थीं कुछ कथाएँ कल्पित, दिल चस्प कुछ कहानी,
कुछ क़िस्से ईं जहानी11, कुछ क़िस्से आं जहानी12.
जंगों की दस्तावेज़ें, जुल्मों की दास्तानें,
गुणगान क़ातिलों के, इंसाफ़ के फ़सानें.

पाषाण युग की बातें, सतयुग पे चार लातें,
आबाद हैं अभी भी, माज़ी की क़ब्र गाहें,
हैरत है इस सदी में, ये बदबू दार लाशें,
कुछ लोग सर पे लेके अब भी टहल रहे हैं.

1 -अतीत 2 -मर्यादाएं 3 -आस्था 4-जीर्ण 5-नागापन 6-दार्शनिकता के स्तम्भ 7-तमाशा 8- मिथ्या 
9-आकाश वाणी 10-दुखद 11-इस जहान के 12 उस जहान के। 

بدبو دار خزانے

، تھا ماضی کا سمندر ، دیکھا لگا کے غوطہ
،گہرایوں میں اِسکے ، تابوت کچھ پڑے تھے
،کہتے لوگ جِنکو ، مینار عظمتوں کی
،جِنکی بلندیوں میں ، روحانی موتیاں ہیں
، - - - آؤ دکھائیں تم کو تابوطی عظمتیں کچھ 

،اندھی عقیدتیں تھیں ، بوسیدہ آستھائیں
،بھگوان راجہ روپی ، کچھ بادشہ خداوند
،خود ساختہ پیمبر، اوتار کچھ سویمبھو
،رِشیوں کی راہبوں کی کھیتی پڑی تھی بنجر
شرنم کٹورہ گچھچھم ، خیرات کھا رہے تھے
روحانیت کے تاجر، نوٹیں بُھنا رہے تھے٠ 
ڈاکو بھی توبہ کرکے ، خود کو پُجا رہے تھے٠ 

،کتنے ہی سر کے خالی ، مینار فلسفہ تھے
،عُریانیت بھی دیکھی ، تھے لایقِ عبادت
،سندوقچوں میں دیکھےآ ڈمبروں کے ناٹک
،کرتب تھے شعبدوں کے ، اور کزب کے کرشمے
،کچھ بے سُری سی تانیں ، کچھ بے تُکی مثالیں
،فرمان آسمانی ، در اصل حادثاتی
 آکاش وانیاں کچھ چھلتی کپٹتی گھاتی٠ 

،تھیں کچھ کتھا ئیں کلپیت ، دل چسپ کچھ کہانی
،کچھ قصّے ایں جہانی ، کچھ قصّے آں جہانی
،جنگوں کی پوتھی پتری ، ظُلموں کی داستانیں
،گُنگان قاتلوں کے ، انصاف کے فسانے
،پاشان یُگ کی باتیں ، نو یُگ پہ چار لاتیں
،آباد ہیں ابھی تک ماضی کی قبر گاہیں
،حیرت ہے اس صدی میں، یہ بدبو دار لاشیں
کُچھ لوگ سر پہ رکھ کر ، اب بھی ٹھل رہے ہیں ٠

Saturday, September 15, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 60 शाज़िशी मुहिम


60

शाज़िशी मुहिम 

खंडहरों मे नक़्श हैं माज़ी की शरारतें,
लूटने में लुट गई हैं ज़ुल्म की इमारतें.

देख लो सफ़ीर ए हज, उस सफ़र में क्या मिला,
थोड़ा सा सवाब था, ढेर सी हिक़ारतें1.

बात क़ायदे की है, अपने ही ज़ुबां में हो,
मज़हबी किताब की तूल तर इबारतें.

है अज़ाब ए जारिया2, ज़ालिमों की क़ौम पर,
मिट गईं तमुद्दनी3 शाख़ की ज़ियारतें.

क़ाफ़ला गुज़र गया, नक़्श ए पा पे धूल है,  
पा सकी न रह गुज़र, सिद्क़4  की हरारतें.

शर्म सार है ख़ुदा, उम्मतों पे बोझ है,
शाज़िशी मुहिम वह थी, बेजा थीं जिसारतें5
.
1 घृणा 2 निरंतर श्राप 3 सभ्यता 4 सत्य 5 दु;साहस

تاریخی سانحے

، کھنڈ ہروں میں نقش ہیں ، ماضی کی شرارتیں
لوٹنے میں لٹ گئی ہیں ، ظلم کی عمارتیں ٠

،دیکھ لو سفیرر تم ، سفر حج میں کیا ملا 
تھوڑا سا ثواب تھا ، ڈھیر سی حقارتیں ٠ 

،بات قائدے  کی ہے ، اپنی ہی زباں میں ہو،
مذہبی کتابوں کی ، تول تر عبارتیں ٠

،ہے عذاب جاریہ ، ظالموں کی قوم پر 
مٹ گئیں تمدّنی ، نقش کی زیارتیں 

،قافلہ گزر گیا ، نقش پا پہ  ہے 
پا سکیں نہ رہگزر ، صدق کی حرارتیں ٠

،شرمسار ہے خدا، امتیں ذلیل ہیں 
سازشی مہم وہ تھی ، بے جا تھیں جسارتیں ٠ 

Friday, September 14, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 59 कुदरत की चोलियाँ


59

कुदरत की चोलियाँ

विज्ञान के विरुद्ध, हैं पुजारी की बोलियाँ,
जो भर रहा है, दान के टुकड़ों से झोलियाँ,
जो बेचते है,जनता को धर्माथ गोलियाँ,
छूती हैं जिनके पाँव को, निंद्रा में टोलियाँ,
जो मठ में दासियों की, उतारे हैं डोलियाँ,
हर रात है दीवाली, जिनकी रोज़ होलियाँ.

विज्ञान है मनुष्य के लक्षित में अग्रसर,
वैज्ञानिकों को अपनी, कहाँ है कोई ख़बर,
जन्नत की आरज़ू है, न दोज़ख का कोई डर,
हुज्जत से, नफ़रतों से, सियासत से ख़ाली सर,
ईजाद कुछ नया हो, हैं इनकी ठिठोलियाँ,
क़ुदरत की खोलते हैं, नई रोज़ चोलियाँ.

قُدرت کی چولیاں

،وِگیان کے وردھ ہیں ، پُجاری کی بولیاں
،جو بھر رہے ہیں ، دان کے ٹُکڑوں سے جھولیاں
،جو بیچتے ہیں جنتا کو ، دھرمارتھ گولیاں 
،چھوتی ہیں جِن کے پاؤں کو ، نِندرا میں ٹولیاں
،جو مٹہ میں داسیوں کی بُلاتے ہیں ڈولیاں
ہر رات ہے دیوالی ، تو ہر روز ہولیاں ٠ 

،وِگیان ہے منشیہ کے لکچھوں میں اگرسر
،وِیگیانکوں کو اپنی کہاں ہے کوئی خبر
،جنّت کی آرزو ہے نہ دوزخ کا کوئی ڈر
،ایجاد کچھ نیا ہو ، ہیں اِن کی ٹھٹھولیاں
قُدرت کی کهولتے ہیں ، نئی روز چولیاں ٠