ग़ज़ल
यादे माज़ी को तो, बेहतर है भुलाए रखिए,
हाल शीशे का है, पत्थर से बचे रखिए।
दोस्ती, यारी, नज़रियात, मज़ाहिब, हालात,
ज़हन ओ दिल पे, न बहनों को बिठाए रखिए।
मैं फ़िदा आप पे कैसे, जो बराबर हैं सभी,
ऐ मसावाती मुजाहिद! मुझे पाए रखिए।
सात पुश्तों से ख़ज़ाना, ये चला आया है,
सात पुश्तों के लिए माँ, इसे ताए रखिए।
आबला पाई भुला बैठी है, राहें सारी,
आप कुछ रोज़, चरागों को बुझाए रखिए।
सच की किरनों से, जहाँ में, लगे न आग कहीं,
आतिशे दिल अभी "मुंकिर" ये बुझाए रखिए।
No comments:
Post a Comment