ग़ालिब ओ मग़लूब
"नो दाई सेल्फ " कहता है बेदार मग़रिबी ,
जिसको कि अहं कहता है , सोया ये मशरिक़ी,
अंजाम कार दोनों की तारीख़ें देखिए ,
मग़रिब रहा सवार तो मशरिक़ सुपुरदगी .
आक़बत के ताजिर
ये दस्त ए नफ़्स में बे ख़ाहिशी की ज़ंजीरें ,
ये नीम ख़ुद कुशी में आक़्बत की तदबीरें ,
खुदा के साथ ताल्लुक़ ये ताजिराना है ,
अजब है तर्क ए तअय्युश बगाराज़ जागीरें .
बांग ए नव
रुख़ पे सूरज के चलो, साए को पीछे छोड़ो ,
अपनी परछाईं से खेलो न, ज़रा मुंह मोड़ो ,
न बदलने की क़सम खाई है, इसको तोड़ो ,
नव सदी के नए पैग़ाम से रिश्ता जोड़ो .
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ReplyDeleteWarm regards
Sanjeev Sharma