रुबाईयाँ
कारूनी ख़ज़ाना है, हजारों के पास,
शद्दाद की जन्नत, बे शुमारों के पास,
जम्हूरी तबर्रुक की ये बरकत देखो,
खाने को नहीं है थके हारों के पास.
चेहरे पे क़र्ब है, लिए दिल में यास,
कैसे तुझे यह ज़िन्दगी, आएगी रास,
मुर्दा है, गया माजी, मुस्तक़बिल है क़यास,
है हाल ग़नीमत ये, भला क्यों है उदास.
हर सुब्ह को आकर ये रुला देता है,
मज़्मूम बलाओं का पता देता है,
बेहतर है कि बेखबर रहें "मुनकिर",
अख़बार दिल ओ जान सुखा देता है.
तबअन हूँ मै आज़ाद नहीं क़ैद ओ बंद,
हैं शोखी ओ संजीदगी, दोनों ही पसंद,
दिल का मेरे, दर दोनों तरफ खुलता है,
है शर्त कि दस्तक का हो मेयार बुलंद.
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