Thursday, October 16, 2014

Junbishen 241



रूबाइयाँ

वह करके दुआ सबके लिए सोता है,
खिलक़त के लिए तुख्म -समर बोता है,
तुम और सताओ न मियां मुनकिर को,
मासूम की आहों में असर होता है.


इक फ़ासले के साथ मिला करते थे,
शिकवा न कोई और न गिला करते थे,
क़ुरबत की शिद्दतों ने डाली है दराड़ ,
दो रंग में दो फूल खिला करते थे.


खामोश हुए, मौत के ग़म मैंने पिए,
अब तुम भी न जलने दो ये आंसू के दिए,
मैं भूल चुका होता हूँ अपने सदमें,
तुम रोज़ चले आते हो पुरसे को लिए.

2 comments:

  1. आह ! कैसे हँस के कहता है के वो मासूम है..,
    हम जिनावर का दिल वो इंसान की दूम है.....

    ReplyDelete
  2. वल्व पत्र फूल मूल फल चढाउँ..,
    या अल्लाह ! ये मरे तो तुझपे दो लोटे जल चढाउँ.....

    ReplyDelete