रूबाइयाँ
वह करके दुआ सबके लिए सोता है,
खिलक़त के लिए तुख्म -समर बोता है,
तुम और सताओ न मियां मुनकिर को,
मासूम की आहों में असर होता है.
इक फ़ासले के साथ मिला करते थे,
शिकवा न कोई और न गिला करते थे,
क़ुरबत की शिद्दतों ने डाली है दराड़ ,
दो रंग में दो फूल खिला करते थे.
खामोश हुए, मौत के ग़म मैंने पिए,
अब तुम भी न जलने दो ये आंसू के दिए,
मैं भूल चुका होता हूँ अपने सदमें,
तुम रोज़ चले आते हो पुरसे को लिए.
खिलक़त के लिए तुख्म -समर बोता है,
तुम और सताओ न मियां मुनकिर को,
मासूम की आहों में असर होता है.
इक फ़ासले के साथ मिला करते थे,
शिकवा न कोई और न गिला करते थे,
क़ुरबत की शिद्दतों ने डाली है दराड़ ,
दो रंग में दो फूल खिला करते थे.
खामोश हुए, मौत के ग़म मैंने पिए,
अब तुम भी न जलने दो ये आंसू के दिए,
मैं भूल चुका होता हूँ अपने सदमें,
तुम रोज़ चले आते हो पुरसे को लिए.
आह ! कैसे हँस के कहता है के वो मासूम है..,
ReplyDeleteहम जिनावर का दिल वो इंसान की दूम है.....
वल्व पत्र फूल मूल फल चढाउँ..,
ReplyDeleteया अल्लाह ! ये मरे तो तुझपे दो लोटे जल चढाउँ.....