गज़ल
अब मेरी उस से बोल चाल नहीं,
है सुकूं, कोई क़ील ओ क़ाल नहीं .
मेरी उस से अजब लड़ाई है,
सर में तलवार, दिल में बाल नहीं .
तेरी रिश्वत की तर बतर रोटी,
मैं भी खाऊँ, कोई सवाल नहीं .
मैंने माना कि तेरा दीं सही,
हाँ मगर आज हस्ब ए हाल नहीं .
तालिबान ए ख़ुदा न तोड़ो बुत,
अपने पुरखों का कुछ ख़याल नहीं .
हद से करता नहीं तजाउज़ वह ,
कहाँ मुंकिर में एतदाल नहिन.
गजरदम शब की ताज़ीम करे क्यूँकर..,
ReplyDeleteइस सियह कारि का उसको मलाल नहीं.....