दोहे
अन चाह कुछ मशविरा , बिन माँगी कुछ राय ,
खा पी कर चलते बने , देकर राम सहाय .
आ देखे शमशान को या फिर कब्रिस्तान ,
जीवन की सच्चाई को , ऐ भोले नादान .
काम किसी के आए न , वह मन का कंगाल ,
पूछे सब से खैरियत , पूछे सब से हाल .
दलित दमित शोषित सभी , धरम बदलते जाएँ ,
पूर्व जनम अंजाम को , पंडित जब तक गाएँ .
अन चाह कुछ मशविरा , बिन माँगी कुछ राय ,
खा पी कर चलते बने , देकर राम सहाय .
देखो हाजी मियाँ कू , हाजी कस कहलाए ।
ReplyDeleteमक्का मदिना छोड़ के सिम्त कलीसा जाए ।१६३४।
भवार्थ : -- देखो उन हाजी मियाओं को ये हाजी कैसे कहलाए। कहते हैं हम तो मक्के मदीना छोड़ के कलीसे बोल तो केदार नाथ में हज करेंगे फिर हम तो काबे में तीर्थ करेंगे ॥ भैया तू यमन है कि क्या है.…. नई पहले स्पष्ट कर लें.....