रुबाइयाँ
क्यों सच के मज़ामीन यूँ मल्फूफ़ हुए,
फ़रमान बजनिब हक, मौकूफ हुए,
इंसान लरज़ जाता है गलती करके,
लग्ज़िश के असर में खुदा मौसूफ़ हुए.
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ग़ारत हैं इर्तेक़ाई मज़मून वले,
अज़हान थके हो गए, ममनून वले,
साइन्स के तलबा को खबर खुश है ये,
इरशाद हुवा "कुन" तो "फयाकून"वले,.
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काफ़िर है न मोमिन, न कोई शैताँ है,
हर रूप में हर रंग में यही इन्सां है,
मज़हब ने, धर्म ने, किया छीछा लेदर,
बेहतर है मुअतक़िद नहीं, जो हैवाँ है.
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तुम अपने परायों की खबर रखते थे,
हालात पे तुम गहरी नज़र रखते थे,
रूठे
हों कि छूटे हों तुम्हारे अपने,
हर एक के दिलों में, घर रखते थे.
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बेयार ओ मददगार हमें छोड़ गए,
कैसे थे वफ़ादार हमें छोड़ गए,
अब कौन निगहबाने-जुनूँ होगा मेरा,
लगता है कि घर बार हमें छोड़ गए.
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