औकात बदलते हैं, बदलतीं सूरत,
अहकाम इलाही में हो कैसे हुज्जत,
खैरात, ज़कात, फ़ितरा तब किसको दें,
जब हों सभी खुश, सभी बा गैरत.
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किस बात पे यूँ गाना बजाना छोड़ा,
नाराज़ हुए, आब ओ दाना छोड़ा,
कुछ सुनने सुनाने की क़सम भी खली,
इक हिचकी ली और सारा ज़माना छोड़ा.
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आवाज़ मुझे आखिरी देकर न गए,
आवाज़ मेरी आखिरी लेकर न गए,
बस चलते चलाते ही जहाँ छोड़ दिया,
अफ़सोस कि समझा के, समझ कर न गए.
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होते हुए पुर अम्न ये हैबत में ढली,
लगती है ख़तरनाक मगर कितनी भली,
है ज़िन्दगी दो चार दिनों की ही बहार,
ये मौत की हुई , जो फूली न फली.
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वह करके दुआ सबके लिए सोता है,
खिलक़त के लिए तुख्म -समर बोता है,
तुम और सताओ न मियां मुनकिर को,
मासूम की आहों में असर होता है.
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