रुबाइयाँ
सर को ठंडा, पैर गरम रख भाई,
हो पीठ कड़ी, पेट नरम रख भाई,
सच्चाई भरे अच्छे करम हों तेरे,
ढोंगी न बन काँटे धरम रख भाई.
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किस धुन से बजाय था मजीरा देखो,
छल बल से चुने मोती ओ हीरा देखो,
बनिए की समाधि है, कि इबरत का मुक़ाम,
इस कब्र का बे कैफ़ जज़ीरा देखो.
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मातूब हुवा जाए बुढ़ापे में वजूद,
लगत मिली बीवी से , न औलाद से सूद,
संन्यास की ताक़त है, न अब भाए जुमूद,
बूढ़े को सताए हैं, बचे हस्त ओ बूद.
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हाँ! जिहादी तालिबों को पामाल करो,
इन जुनूनियों का बुरा हाल करो,
बे कुसूर, बे नयाज़ पर आंच न आए,
आग के हवाले न कोई माल करो.
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शीशे के मकानों में बसा है पच्छिम,
मय नोश, गिज़ा ख़ोर, है पुर जोश मुहिम,
सब लेता है मशरिक के गदा मग़ज़ोन से,
उगते हैं जहाँ धर्म गुरु और आलिम.
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