रुबाइयाँ
चेहरे पे क़र्ब है, लिए दिल में यास,
कैसे तुझे यह ज़िन्दगी, आएगी रास,
मुर्दा है, गया माजी, मुस्तक़बिल है क़यास,
है हाल ग़नीमत ये, भला क्यों है उदास.
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हर सुब्ह को आकर ये रुला देता है,
मज़्मूम बलाओं का पता देता है,
बेहतर है कि बेखबर रहें "मुनकिर",
अख़बार दिल ओ जान सुखा देता है.
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तबअन हूँ मै आज़ाद नहीं क़ैद ओ बंद,
हैं शोखी ओ संजीदगी, दोनों ही पसंद,
दिल का मेरे, दर दोनों तरफ खुलता है,
है शर्त कि दस्तक का हो मेयार बुलंद.
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अल्लाह उन्हें रख्खे, उनकी क्या बात,
हर वक़्त रहा करते हैं सब से मुहतात,
खाते हैं छील छाल कर रसगुल्ले,
पीते है उबाल कर मिला आबे-हयात.
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फ़िरऔन मिटे, ज़ार ओ सिकंदर टूटे,
अँगरेज़ हटे नाज़ि ओ हिटलर टूटे,
इक आलमी गुंडा है उभर कर आया,
अल्लाह करे उसका भी ख़जर टूटे.
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बहुत खूब उम्दा प्रस्तुति... दिल का मेरे, दर दोनों तरफ खुलता है,
ReplyDeleteहै शर्त कि दस्तक का हो मेयार बुलंद.
वाह