ग़ज़ल
शाखशाना कोई अज़मत नहीं है,
भूल जाने में कुछ दिक़्क़त नहीं है .
दिल है नालां मगर नफरत नहीं है ,
वह मेरा आशना वहशत नहीं है.
मेरी जानिब से शर मुमकिन नहीं है ,
दिल दुखाना मेरी आदत नहीं है.
सच है दिल में , भटक रहे हो अबस,
दैर या फिर हरम में, सत् नहीं है.
आजज़ी कर चुके मुंकिर बहुत ,
और झुकने की अब ताक़त नहीं है.
मिल गया सब, मगर राहत नहीं है,
कह भी मुंकिर कि अब चाहत नहीं है.
غزل
شاخشانہ کوئی عظمت نہیں ہے
بھول جانے میں کچھ دقّت نہیں ہے
دل ہے نالاں مگر نفرت نہیں ہے
وہ میرا آشنا وحشت نہیں ہے
میری جانب سے شر ممکن نہیں ہے
دل دکھانا میری عادت نہیں ہے
سچ ہے دل میں بھٹک رہے ہو عبس
دیر یا حرم میں ست نہیں ہے
عاجزی کر چکا منکر بہت
اور جھکنے کی اب طاقت نہیں ہے
مل گیا سب مگر راحت نہیں ہے
کہہ بھی منکر کہ اب چاہت نہیں ہے
*
No comments:
Post a Comment