Friday, September 2, 2016

Junbishen 755


nazm

मुन्सिफ़ हाज़िर हो 

ऐ अदालत तेरे आँखों में हैं क़ातिल के नुकूश ,
और तेरे सर पे, बड़ी बेटी की शादी तय है,
इक बड़ी दौरी को भरना है, तुझे वर है सही ,
अस्मत ए अद्ल को बेचेगा, तू रंडी की तरह।

मरने वाले का मैं वालिद , तू है बेटी का पिता ,
हार जाऊंगा मुक़दमा , मैं बड़ा मुफ़लिस हूँ .

मशविरा है ये मेरा , छोड़ो अदालत के तवाफ़ ,
सब्र कर डालो , मुक़दमे का न चक्कर पालो ,
बख्श दें मुद्दई हर छोटे गुनह गारों को ,
और बड़े से तो ये बेहतर है, कि वह खुद ही निपटें ,
कल की बातें हैं अदालत , ये गवाही , ये वकील ,
आज पैसे का खिलौना है ये ज़हरीला निजाम ,

नहीं इंसाफ अगर है तो तबाही है यहाँ ,
यह बना होगा कभी सिद्क़ की मीनारों पर ,
आज यह सब से बड़ा रिशवतों का अड्डा है .
तुम ज़मीरों में बसे हो तो, बहादर भी बनो ,
वरना बुज़दिल की तरह जा के खुद कुशी कर लो .

منصف حاضر ہو 

ائے عدالت تری آنکھوں میں ہیں ، قاتل کےنقوش 
اور ترے سر پہ بڑی بیٹی کی شادی طے ہے 
عظمت عدل کو بیچیگا تو رنڈی کی طرح 
مرنے والے کا میں والد ہوں ، تو بیٹی کا پتا 
ہار جاؤنگا مقدمہ ، کہ بہت مفلس ہوں ٠ 
مشورہ ہے یہ مرا ، چھوڑو عدالت کا طواف 
صبر کر ڈالو مقدمے کا نہ چکّر پالو 
بخش دیں مدعی ہر چھوٹے گنہگاروں کو 
اور بڑوں سے تو یہ بتر ہے ، کہ خود ہی نپٹن ٠ 
کل کی باتیں ہیں عدالت ، یہ گواہی ، یہ وکیل 
آج پیسوں کا کھلونہ ہے، یہ بوسیدہ نظام 
یہ بنا ہوگا کبھی صدق کے میناروں پر 
آج یہ سب سے بڑا رشوتوں کا ا ڈ ڈا ہے ٠ 
تم ضمیروں میں بیس ہو تو بہادر بھی بنو 
مت غلامانہ جیو بڑھ کے سنوارو یہ نظام ٠ 

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