Friday, September 30, 2016

Junbishen 753




 कमसिन रहनुमा

कमसिन था रह नुमा, कि जवाँ साल मर गया ,
अध् कचरे से उसूल, दिमागों में भर गया,
अब तक जिन्हें गले से, लगाए हुए हो तुम ,
बोसीदगी1 से घर को, सजाए हुए हो तुम।
पूरी जो उम्र पाता, समझता वह भूल ख़ुद ,
मतरूक2 करके जाता, वह अपने उसूल ख़ुद।
१-जीर्णता २-अप्रचलित


کم سن رھنما 
کم سن تھا رہ نما کہ جوان سال مر گیا 
ادھ کچرے سے اصول ، دماغوں میں بھر گیا 
اب تک انھیں گلے سے ، لگاۓ ہوئے ہو تم 
بوسیدگی سے گھر کو ، سجاۓ ہوئے ہو تم 
پوری جو عمر پاتا سمجھتا وہ بھول خود 
متروک کر کے جاتا ، وہ اپنے اصول خود ٠

Wednesday, September 28, 2016

Junbishen 752



जुरवा कहिस

भ्रमित हव्यो गयो, भ्रमण करिके,
चार धाम हव्यो आएव ।
माँगा, बाँटा अउर परोसा,
ज्ञान सभै लै आएव।
जोड़ा गांठा धेला पैसा,
पनडन का दै आएव,
दइव रहा मन तुम्हरे बैठा,
ओह पर न पतियाएव।

جروا کہس 

بھرمت ہوے گیو ، بھرمن کر کے
چار دھام ہوے آ یو 
مانگا باٹا اور پروسہ 
گیان سبھے لے آیو 
جوڑا گانٹھ پیسہ دھیلا 
پنڈن کا دے آیو 
دیو رہا من تمہرے بیٹھا 
اوہ پر نہ تتیایو

**********

Monday, September 26, 2016

Junbishen 751



nazm

तुम - - -

ख़ुद को समझ रहे हो, कि रूहे रवां1 हो तुम ,
खिलक़त2 ये कह रही है, कि उसपे गरां हो तुम ।

सब फ़ारिग़ सलात3 अभी तक अजां हो तुम ,
हर सम्त है बहार,  शिकार खिजाँ4 हो तुम ।

क्यूँ चाहते हो, अपना यकीं सब पे थोप दो ,
है भूत आस्था का, वहीं पर जहाँ हो तुम ।

फ़रदा5 की कोख में हैं, सभी हल छिपे हुए ,
माज़ी6 सवार सम्त, मुखालिफ़7 रवाँ हो तुम ।

सर जिस्म पर ज़रूर है, रूहों का क्या पता ?
इसका ख़याल पहले करो, नातवाँ8 हो तुम ।

शिद्दत9 है, जंग जूई10, बेएतदाली11 है ,
आपस में लड़ रहे हो, जहाँ इम्तेहानहो तुम ।

महकूम12 गर हुए, तो रवा दारी13 चाहिए ,
कुछ और ही लगे हो, जहाँ हुक्मराँ14 हो तुम ।

कुछ ऐसे बन सको, कि तुम्हारी हो पैरवी ,
दुन्या गवाह हो, कि उरूजे-जहाँ15 हो तुम ।

'मुंकिर' जगा रहा है, उठो मर्तबा16 वालो ,
इक्कीसवीं सदी में, जहाँ है, कहाँ हो तुम।


1-प्राण-वर्धक २- अन्तर राष्ट्रिय जन समूह ३-नमाज़ अदा कर चुकना ४-पतझड़ 
५-आनेवाला कल ६-अतीत ७-उल्टी दिशा ८ -कमजोर
 ९-उग्रता १०-युद्धाभियान ११-असंतुलन १२-आधीन १३ -उचित बर्ताव 
१४-शाशक१५- दुन्या ऊपर १६-श्रेरेष्ट

تم 

خود کو سمجھ رہے ہو ، کہ روح رواں ہو تم 
خلقت یہ کہ رہی ہے کہ ، اس پہ گراں ہو تم ٠

سب فارغ صلات ، ابھی تک اذاں ہو تم 
ہر سمت ہے بہار ، شکار خزاں ہو تم ٠

کیوں چاہتے ہو اپنا یقین سب پہ تھوپ دن 
ہے بھوت آستھا کا وہیں پر، جہاں ہو تم ٠

فردہ کے کوکھ میں ہیں ، سبھی حل چھپے ہوئے 
ماضی سوار ، سمت مخالف رواں ہو تم ٠

سر جسم پر ضرور ہے روحوں کا کیا پتہ 
اس کا خیال پہلے کرو، ناتواں ہو تم ٠

شدّت ہے ، جنگ جوی ہے ، اعتدالی ہے 
آپس میں لڑ رہے ہو ، جہاں امتحاں ہو تم ٠

محکوم جب ہوئے تو ، روا داری چاہئے ،
کچھ اور ہی لگے ہو ، جہاں حکمراں ہو تم ٠

کچھ ایسے بن سکو ، کہ تمہاری ہو پیروی 
دنیا گواہ ہو کہ ، عروج جہاں ہو تم ٠

منکر' جگا رہا ہے اٹھو ! اہل مرتبہ 
اکیسویں صدی میں جہاں ہے ، کہاں ہو تم ٠   

Friday, September 23, 2016

Junbishen 750

नज़्म

छीछा लेदर

ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी,
भए न्याय के सब अधिकारी।

इन सब को अपराधी जान्यो,
सभै की मौन समाधि जान्यो।

निर्बल जीव को पापी संजयो,
ताड़क को परतापी समझयो।

इनके मूडे सींग उग आई,
इनके मार से कौन बचाई?

गंवरा भए शहर के बासी,
न्याय धीश हैं चमरा पासी।

पशुअन तक सनरक्षन पाइन,
सवरण जान्यो जनम गंवाइन।

नारी माँ बेटी बन बनयाई,
तुलसी बाबा राम दुहाई।

چھیچھ لیدر 

دھول گنوار شودر پشو ناری 
بھیے نیاے کے سب ادھیکاری 

ان سب کو اپرادھی جانا 
سبھے کی مون سمادھی جانا 

نربل جیو کو پاپی سمجھا 
تاڑک کو پرتاپی سمجھا 

ان کے موڑے سینگ اگ آئ 
انکے مار سے کون بچائی 

گنورا بھنے شہر کے باسی 
نیاے دھیش ہیں چمرا پاسی 

پشوں تک سنرکچہن پائن 
سورن جانو جنم گوائیں 

ناری ماں بیٹی بن آئ 
تلسی بابا رام دہائی ٠ 
*********

Wednesday, September 21, 2016

Junbishen 749



ग़ज़ल 

(आख़री ग़ज़ल , लंदन में कही) 

कहा इस्म आज़म की तशरीह कर ,
कहा लाइलः की इबारत है यह । 

कहा हर मुसलमाँ , मुसलमां का हो ,
कहा कि तअस्सुब कुदूरत है यह । 

कहा यह इबादत भी इक कुफ्र है ,
कहा कि क़बीलों की आदत है यह। 

कहा इश्क़ ए मारूफ में डूब जा ,
कहा कोई जिंस ए लताफ़त है यह। 

कहा लज़्ज़तों की हक़ीक़त है क्या ,
कहा फ़ाक़ा मस्तों को मोहलत है यह। 

कहा तू नफ़ी में ख़ुशी करके चल ,
कहा ऐन इद्दत में शिद्दत है यह। 

कहा पाक ए अर्जी की तहरीक कर ,
कहा बिद्अतों की तिजारत है यह। 

कहा फिर नए रब रब की पहचान कर ,
कहा कि सदा ए सदाक़त है यह। 

 غزل 
(لندن میں کہی گئی آخری غزل )


کہا اسم اعظم  کی تشریح کر 
کہا لا الہ کی عبارت ہے یہ 

کہا ہر مسلماں مسلماں کا ہو 
کہا کہ تعصب قدورت ہے یہ 

کہایہ عبادت بھی ایک کفر ہے 
کہا کہ قبیلوں کی عادت ہے یہ 

کہا عشق معروف میں ڈوب جا 
کہا کوئی جنس لطافت ہے یہ ؟

کہا تو نفی میں خوشی کر کے چل 
کہا عین عدّت میں شدّت ہے یہ  

کہا لذّتوں کی حقیقت ہے کیا ؟
کہا فاقہ مستوں کو مہلت ہے یہ ٠

کہا پاک ارضی کی تحریک ہو 
کہا بدعتوں کی تجارت ہے یہ 

کہا پھر نئے حق کا اعلان 
کہا کہ صدا ے صداقت ہے یہ 
------

Saturday, September 17, 2016

Junbishen 748



ग़ज़ल

जहाँ रुक गया हूँ वह मंजिल नहीं है ,
ये तन आगे बढ़ने के क़ाबिल नहीं है .

 नफ़ी लेके मुल्क ए अदम जा रहा हूँ ,
अजब मुस्बतें हैं कि हासिल नहीं हैं .

ज़ईफ़ी , नहीफ़ी , ग़रीबी , असीरी ,
सदा कर आना कोई क़ातिल नहीं है .

जो रूपोश वहशत, नफ़स चुन रही है,
वह ग़ालिब हैं मद्दे मुक़ाबिल नहीं हैं .

तेरे हुस्न की बे रुखी कह रही है ,
तेरे पास सब कुछ है, बस दिल नहीं है .

ये मुंकिर नई  रहगुज़र चाहता है ,
तुम्हारी क़तारों में शामिल नहीं है .

غزل 

جہاں رک گیا ہوں، وہ منزل نہیں ہے 
یہ تن آگے بڑھنے کے قابل نہیں ہے 

نفی لیکے ملک عدم جا رہا ہوں 
عجب مثبتیں ہیں کہ حاصل نہیں ہیں 

ضعیفی ، نحیفی ، غریبی ، اسیری 
صدا دے آنا، کوئی قاتل نہیں ہے ؟

جو روپوش وحشت ، نفس چن رہی ہے 
وہ غالب ہے، مد مقابل نہیں ہے 

ترے حسن کی، بے رکھی کہہ رہی ہے 
ترے پاس سب کچھ ہے ، بس دل نہیں ہے 

یہ منکر نئی رہگزر چاہتا ہے 
تمہاری قطاروں میں شامل نہیں ہے 


Wednesday, September 14, 2016

Junbishen 747



ग़ज़ल

हक की बातें ही नहीं करते हैं,
हक तलफ़ गर हों, बहुत डरते हैं . 

वज्न को ख़त्म किया दौलत ने ,
पाँव धरती पे नहीं धरते हैं .

घर की दीवारें दरक जाएंगी ,
बात धीमे से किया करते हैं .

सजती धज्ती हैं जतन से परियाँ ,
ये है लाज़िम कि जवाँ मरते हैं .

जाम भरते हैं ख़ुद अपने सर में ,
सर निजामों से मेरा भरते हैं .

एक मुंकिर के सिवा बाक़ी सब ,
तेरे जन्नत की रविश चरते हैं .

غزل 

حق کی باتیں ہی نہیں کرتے ہیں 
حق تلف گر ہوں ، بہت ڈرتے ہیں 

وزن کو ختم کیا دولت نے
پانوں دھرتی پہ نہیں دھرتے ہیں 

گھر کی دیواریں درک جاینگی 
دھیمے دھیمیں وہ بات کرتے ہیں 

سجتی دھجتی ہیں جتن سے پریاں 
یہ ہے لازم کہ جواں مرتے ہیں 

جام بھرتے ہیں خود اپنے سر میں 
سر میں میرے نظام بھرتے ہیں

ایک منکر کے سوا باقی سب 
تیری جنّت کی گھاس چرتے ہیں 


Monday, September 12, 2016

Junbishen 746




ग़ज़ल

शाखशाना कोई अज़मत नहीं है,
भूल जाने में कुछ दिक़्क़त नहीं है .

दिल है नालां मगर नफरत नहीं है ,
वह मेरा आशना वहशत नहीं है. 

मेरी जानिब से शर मुमकिन नहीं है ,
दिल दुखाना मेरी आदत नहीं है. 

सच है दिल में , भटक रहे हो अबस,
दैर या फिर हरम में, सत् नहीं है. 

आजज़ी कर चुके मुंकिर बहुत ,
और झुकने की अब ताक़त नहीं है. 

मिल गया सब, मगर राहत नहीं है, 
कह भी मुंकिर कि अब चाहत नहीं है. 
غزل

شاخشانہ کوئی عظمت نہیں ہے
بھول جانے میں کچھ دقّت نہیں ہے 

دل ہے نالاں مگر نفرت نہیں ہے 
وہ میرا آشنا وحشت نہیں ہے 

میری جانب سے شر ممکن نہیں ہے 
دل دکھانا میری عادت نہیں ہے 

سچ ہے دل میں بھٹک رہے ہو عبس 
دیر  یا حرم میں ست نہیں ہے 

عاجزی کر چکا منکر بہت 
اور جھکنے کی اب طاقت نہیں ہے 

مل گیا سب مگر راحت نہیں ہے 
کہہ بھی منکر کہ اب چاہت نہیں ہے 

*

Friday, September 9, 2016

Junbishen 745



ग़ज़ल

तलवार है समाज की फ़ितरत के हैं गले ,
गाए कहाँ पे इश्क़, कहाँ फूले और फले .

दातों तले ज़बान हो, या हाथ तू मले ,
मुंह से तेरे फिसल ही गई, बात हल्बले .

क्या खूब हो कि एक हवा, मौत की चले ,
शाखों को छोड़ जाएँ सभी, फल सड़े गले. 

ख़बरें फ़ना की और किसी नव जवां को हों,
जुज़्दान में ही रख अभी, क़ब्री मुआमले .

खुद साज़ियाँ मना हैं, तो खुद सोज़ियाँ हराम,
इस मसलिकी निज़ाम में, मुश्किल हैं मरहले .

किन मौसमों में क्या क्या, बोया कहाँ कहाँ ,
मुंकिर पकी हैं फ़स्ल सभी, जा के काट ले.

غزل 

تلوار ہے سماج کی ، فطرت کے ہیں گلے 
کھلکھلاۓ عشق، کہاں پھولے اور پھلے 

داتوں تلے زبان ہو ، یا ہاتھ تو ملے 
منہ سے تیرے نکل ہی گئی، بات ہلبلے 

کیا خوب ہو کہ ایک ہوا، موت کی چلے 
شاخوں کو چھوڑ جایں، سبھی پھل سڑے گلے 

خبریں فنا کی اور ، کسی نو جواں کو ہوں 
جزدان ہی میں ہی رکھ ابھی، قبری معاملے 

خود سازیاں منع ہیں، تو خود سوزیاں حرام 
اس مسلکی نظام میں، مشکل ہیں مرحلے 

کن موسموں میں کیا کیا، بویا کہاں کہاں 
منکر پکی ہیں فصل سبھی، جا کے کاٹ لے 


Wednesday, September 7, 2016

Junbishen 758


Nazm

ख़ुदकुशी

ख़ुद कुशी जुर्म नहीं, उम्र के क़ैदी हैं सभी ,
मुझको आती है हँसी, आलम ए हैरत में कभी ,
रग पे, धड़कन पे, हुकूमत की इजारा दारी ,
अपनी सासों में भी, गोया है दख्ल ए सरकारी .

गर किसी का कोई एक चाहने वाला भी न हो ,
शर्म ओ ग़ैरत का, अगर एक नवला भी न हो ,
दर्द ए अमराज़ से जीने की सज़ा मिलती हो ,
एक लाचार को रहमों की, बला मिलती हो ,

बुज़दिली ये है कि, मर मर के जिए जाते हैं ,
है तो ज़िल्लत की, मगर सांस लिए जाते हैं .
मरना आसान नहीं है, ये बहुत मुश्किल है ,
वक़्त माकूल पर मर ले, वह बशर कामिल है. 

जिंदगानी पे अगर वाक़ई दिल से रो दे ,
जीना चाहें तो जिएन, वर्ना ज़िन्दगी खो दे .

कोढ़ी मफ़लूज ओ अपाहिज को चलो समझाएं ,
खुद कुशी करने की तरकीब, उन्हें बतलाएं ,
उनको बतलाएं, ज़मीं हद के उन्हें सहती है ,
ज़िन्दा लाशों से ज़मीं, पाक नहीं रहती है .

خود کشی 

خود جرم نہیں ، عمر کے قیدی تو نہیں
مجھکو آتی ہے ہنسی ، عالم حیرت میں کبھی 
رگ پہ ، دھڑکن پہ ، حکومت کی اجارہ داری 
اپنی ساسوں پہ بھی ، گویہ ہے دخل سرکاری ٠ 
*
گر کسی کا کوئی ، اک چاہنے والا ہی نہ ہو 
شرم و غیرت کا اگر ، ایک نوالہ بھی نہ ہو 
درد امراض سے ، جینے کی سزا ملتی ہو 
ایک لاچار کو ، رحموں کی بلا ملتی ہو 
بزدلی یہ ہے کہ ، مر مر کے جے جاتے ہیں
ہے تو ذلّت کی ، مگر سانس لئے جاتے ہیں ٠ 
مرنا آسان نہیں ہے ، یہ بڑا مشکل ہے 
وقت معقول پہ مر لے ، وہ بشر کامل ہے ٠ 
*
زندگانی پہ اگر واقعی ، دل سے رو دے 
پھر تو بہتر ہے ، بار گراں ہستی کھو دے ٠ 
کوڑھی ، مفلوج و اپاہج کو ، چلو سمجھا یں 
خود کشی کرنے کی ، ترکیب انھیں بتلایں 
انکو سمجھا یں ، زمیں ہڑ کے انھیں سہتی ہے 
زندہ لاشوں سے ، زمیں پاک نہیں رہتی ہے ٠ 

Junbishen 757


Nazm

ख़ुदकुशी

ख़ुद कुशी जुर्म नहीं, उम्र के क़ैदी हैं सभी ,
मुझको आती है हँसी, आलम ए हैरत में कभी ,
रग पे, धड़कन पे, हुकूमत की इजारा दारी ,
अपनी सासों में भी, गोया है दख्ल ए सरकारी .

गर किसी का कोई एक चाहने वाला भी न हो ,
शर्म ओ ग़ैरत का, अगर एक नवला भी न हो ,
दर्द ए अमराज़ से जीने की सज़ा मिलती हो ,
एक लाचार को रहमों की, बला मिलती हो ,

बुज़दिली ये है कि, मर मर के जिए जाते हैं ,
है तो ज़िल्लत की, मगर सांस लिए जाते हैं .
मरना आसान नहीं है, ये बहुत मुश्किल है ,
वक़्त माकूल पर मर ले, वह बशर कामिल है. 

जिंदगानी पे अगर वाक़ई दिल से रो दे ,
जीना चाहें तो जिएन, वर्ना ज़िन्दगी खो दे .

कोढ़ी मफ़लूज ओ अपाहिज को चलो समझाएं ,
खुद कुशी करने की तरकीब, उन्हें बतलाएं ,
उनको बतलाएं, ज़मीं हद के उन्हें सहती है ,
ज़िन्दा लाशों से ज़मीं, पाक नहीं रहती है .

خود کشی 

خود جرم نہیں ، عمر کے قیدی تو نہیں
مجھکو آتی ہے ہنسی ، عالم حیرت میں کبھی 
رگ پہ ، دھڑکن پہ ، حکومت کی اجارہ داری 
اپنی ساسوں پہ بھی ، گویہ ہے دخل سرکاری ٠ 
*
گر کسی کا کوئی ، اک چاہنے والا ہی نہ ہو 
شرم و غیرت کا اگر ، ایک نوالہ بھی نہ ہو 
درد امراض سے ، جینے کی سزا ملتی ہو 
ایک لاچار کو ، رحموں کی بلا ملتی ہو 
بزدلی یہ ہے کہ ، مر مر کے جے جاتے ہیں
ہے تو ذلّت کی ، مگر سانس لئے جاتے ہیں ٠ 
مرنا آسان نہیں ہے ، یہ بڑا مشکل ہے 
وقت معقول پہ مر لے ، وہ بشر کامل ہے ٠ 
*
زندگانی پہ اگر واقعی ، دل سے رو دے 
پھر تو بہتر ہے ، بار گراں ہستی کھو دے ٠ 
کوڑھی ، مفلوج و اپاہج کو ، چلو سمجھا یں 
خود کشی کرنے کی ، ترکیب انھیں بتلایں 
انکو سمجھا یں ، زمیں ہڑ کے انھیں سہتی ہے 
زندہ لاشوں سے ، زمیں پاک نہیں رہتی ہے ٠ 

Tuesday, September 6, 2016

Junbishen 756


नज़्म 
ख़लील जिब्रान के नाम 
गीत 
बहुत थके ऐ हमराही हम , आओ थोड़ा जी जाएँ ,
मैं भी प्यासा , तुम भी प्यासे , इक दूजे को पी जाएँ .

अरमानो के बीज दबे हैं , बर्फ़ीली चट्टानों में ,
बरखा रानी हिम पिघला , अंकुर फूटें , हम लहराएँ .

कुछ न बोलें , मुँह न खोलें , शब्दों के परछाईं तले ,
चारों नयनों के दर्पन को , सारी छवि दे दी जाएँ .

तेरे तन की झीनी चादर , मेरे देह की तंग क़बा ,
आओ दोनों परिधानों को, उतन पुतन के सी जाएँ .

सूरज के किरनों से बंचित , नर्म हवाओं से महरूम ,
काया क़ैदी कपड़ों की है ,आओ बग़ावत की जाएँ .

نغمۂ دوگانہ 

بہت تھکے ائے ہمراہی ہم ، آؤ تہوڑا جی جائیں 
میں بھی پیاسا تم بھی پیاسے ، چلو یہ دوری پی جائیں ٠ 

ارمانوں کے بیج دبے ہیں ، برفیلی چٹانوں میں 
برکھا اب برفیں پگھلا ، انکور پھوٹیں، ہم لہرا یں ٠ 

کچھ نہ بولیں ، لب نہ کھولیں ، شبدوں کے پرچھائیں تلے 
چاروں نینوں کے درپن کو، ساری چھوی دے دی جائیں ٠ 

تیرے تن کی جھینی چادر ، میرے دیہ کی تنگ قبا 
آؤ دونوں پریدھانوں کو ، اتن پتن، اک کی جائیں ٠ 

سورج کے کرنوں سے بنچت ، نرم ہواؤں سے محروم 
کایا قیدی کپڑوں کی ہیں ، آؤ بغاوت کی جائیں ٠

*************

Friday, September 2, 2016

Junbishen 755


nazm

मुन्सिफ़ हाज़िर हो 

ऐ अदालत तेरे आँखों में हैं क़ातिल के नुकूश ,
और तेरे सर पे, बड़ी बेटी की शादी तय है,
इक बड़ी दौरी को भरना है, तुझे वर है सही ,
अस्मत ए अद्ल को बेचेगा, तू रंडी की तरह।

मरने वाले का मैं वालिद , तू है बेटी का पिता ,
हार जाऊंगा मुक़दमा , मैं बड़ा मुफ़लिस हूँ .

मशविरा है ये मेरा , छोड़ो अदालत के तवाफ़ ,
सब्र कर डालो , मुक़दमे का न चक्कर पालो ,
बख्श दें मुद्दई हर छोटे गुनह गारों को ,
और बड़े से तो ये बेहतर है, कि वह खुद ही निपटें ,
कल की बातें हैं अदालत , ये गवाही , ये वकील ,
आज पैसे का खिलौना है ये ज़हरीला निजाम ,

नहीं इंसाफ अगर है तो तबाही है यहाँ ,
यह बना होगा कभी सिद्क़ की मीनारों पर ,
आज यह सब से बड़ा रिशवतों का अड्डा है .
तुम ज़मीरों में बसे हो तो, बहादर भी बनो ,
वरना बुज़दिल की तरह जा के खुद कुशी कर लो .

منصف حاضر ہو 

ائے عدالت تری آنکھوں میں ہیں ، قاتل کےنقوش 
اور ترے سر پہ بڑی بیٹی کی شادی طے ہے 
عظمت عدل کو بیچیگا تو رنڈی کی طرح 
مرنے والے کا میں والد ہوں ، تو بیٹی کا پتا 
ہار جاؤنگا مقدمہ ، کہ بہت مفلس ہوں ٠ 
مشورہ ہے یہ مرا ، چھوڑو عدالت کا طواف 
صبر کر ڈالو مقدمے کا نہ چکّر پالو 
بخش دیں مدعی ہر چھوٹے گنہگاروں کو 
اور بڑوں سے تو یہ بتر ہے ، کہ خود ہی نپٹن ٠ 
کل کی باتیں ہیں عدالت ، یہ گواہی ، یہ وکیل 
آج پیسوں کا کھلونہ ہے، یہ بوسیدہ نظام 
یہ بنا ہوگا کبھی صدق کے میناروں پر 
آج یہ سب سے بڑا رشوتوں کا ا ڈ ڈا ہے ٠ 
تم ضمیروں میں بیس ہو تو بہادر بھی بنو 
مت غلامانہ جیو بڑھ کے سنوارو یہ نظام ٠