Monday, August 22, 2016

Junbishen 750




ग़ज़ल

अब मेरी उस से बोल चाल नहीं,
है सुकूं, कोई क़ील ओ क़ाल नहीं . 

मेरी उस से अजब लड़ाई है, 
सर में तलवार, दिल में बाल नहीं . 

तेरी रिश्वत की तर बतर रोटी,
मैं भी खाऊँ, कोई सवाल नहीं .

मैंने माना कि तेरा दीं सही,
हाँ मगर आज हस्ब ए हाल नहीं .

तालिबान ए ख़ुदा न तोड़ो बुत, 
अपने पुरखों का कुछ ख़याल नहीं .

हद से करता नहीं तजाउज़ वह ,
कहाँ मुंकिर में एतदाल नहिन. 


غزل 

اب مری اس سے بول چال نہیں 
ہے سکوں ، کوئی قیل قال نہیں 

میری اس سے عجب لڑائی ہے 
سر میں تلوار ، دل میں بال نہیں 

تری رشوت کی تر بتر روٹی 
میں بھی کھاؤں ، کوئی سوال نہیں 

میں نے مانا کہ تیرا دیں ہے صحیح 
ہان ! مگر آج حسب حال نہیں 

طالبان خدا نہ توڑو بت 
تم کو پرکھوں کا کچھ خیال نہیں 

حد سے کرتا نہیں تجاوز وہ 
کہاں منکر میں اعتدال نہیں 

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