Friday, May 27, 2016

Junbishen 794



ग़ज़ल

बहानो पर बहाना,
नया फिर इक फ़साना।

तवाज़ुन1 खो चुका हूँ,
न अब सर को उठाना।

तल्लुक़ मुन्क़ता2 हो,
नहीं मिलना मिलाना।

नहीं बर मिल सका था,
कि ऊंचा था घराना।

तहारत3 पर अडे हो,
न तुम हरगिज़ नहाना।

फ़लक़ पर जा बसे हो,
लिखा था आब दाना।

बहुत बारीक से हो,
ज़रा नज़दीक आना।

बहुत सीधा है 'मुंकिर',
न उसका दिल दुखाना।

१-संतुलन २-विच्छेद ३- पवित्रता

غزل
بہانو پر بہانا 
بڑے جھوٹے ہو مانا ٠ 

توازن کھو چکا ہوں 
نہ پھر آنسو بہانا ٠ 

تعلق منقطع ہو
نہیں ملنا ملانا ٠ 

نگاہیں ہیں کہیں پر
کہیں پر ہے نشانہ ٠ 

نہیں بر مل سکا ہے 
کہ اونچا تھا گھرانہ ٠ 

طہارت پر اڑے ہو 
نہ تم ہرگز نہانا ٠ 

فلق پر جا بسے ہو 
لکھا تھا آب دانہ ٠ 

بہت باریک سے ہو
ذرہ نزدیک آنا ٠ 

بہت سیدھا ہے منکر 
نہ اسکا دل دکھانا ٠ 
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