ग़ज़ल
तू है रुक्न अंजुमन का, तेरी अपनी एक ख़ू है,
मैं अलग हूँ अंजुमन से, मेरा अपना रंग ओ बू है.
वतो इज़ज़ो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए,
जो था शर पे, सुर्ख़ रू है, बेक़ुसूर ज़र्द रू है.
तेरा दीं सुना सुनाया, है मिला लिखा लिखाया,
मेरे ज़ेहन की इबारत, मेरी अपनी जुस्तुजू है.
मुझे खौफ है ख़ुदा का, न ही एहतियात ए शैतान,
नहीं खौफ दोज़खों का, न बेहिश्त आरज़ू है.
वोह नहीं पसंद करते, जो हैं सर्द मुल्क वाले,
तेरी जन्नतों के नीचे, वो जो बहती अब ए जू है.
तेरे ध्यान की ये डुबकी, है सरल बहुत ही जोगी ,
कि बहुत सी भंग पी लूँ ,तो ये पाऊँ तू ही तू है.
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* वतो इज़जो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए=खुदा जिसको चाहे इज्ज़त दे,जिसको काहे जिल्लत.
غزل
تو ہے رکن انجمن کا ، تری اپنی ایک خو ہے،
میں الگ ہوں انجمن سے ، مرا اپنا رنگ بو ہے ٠
وتعزو من تشاؤ ، وتزللو من تشاؤ
جو تھا شر پہ ، سرخرو ہے ، بے قصور زرد رو ہے
ترا دیں سنا سنایا ، ہے ملا لکھا لکھایا
مرے ذہن کی عبارت، مری اپنی جستجو ہے ٠
مجھے خوف نہ خدا کا ، نہ ہی احتیاط شیطاں
نہ ہی خوف دوزخوں کا ، نہ بہشت آبرو ہے ٠
وہ نہیں پسند کرتے ، جو ہیں سرد ملک والے
ترے جنّتوں کے نیچے ، وہ جو بہتی اب جو ہے ٠
ترے دھیان کی یہ ڈبکی ، ہے بہت سرل سی سادھو
کہ ذرا سی بھنگ پی لوں ، تو یہ پاؤں تو ہی تو ہے ٠
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