Wednesday, March 16, 2016

JUNbishen 764

Nazm 

क़ुदरत का मशविरा

अध्-जले ऐ पेड़! तू है, उम्र ए रफ़्ता 0 का शिकार,
क़र्ब ए गरमा१ झेलता, तनहा खडा है धूप में,
इब्न ए आदम२ को है, बेचैनी कि इन हालात में,
ढूढ़ता फिरता है पगला, मंदिरों-मस्जिद की छाँव।
जानता है तू कि बस, ग़ालिब है क़ुदरत का निज़ाम3,
ज़िन्दगी धरती पे जब, होती है बे बर्ग ओ समर4,
तब ज़मीं पर बार, बन जाता है हर पैदा शुदा,
है ज़मीं बर हक़ कि ढोने हैं, उसे अगले जनम,
तेरे, मेरे, इनके, उनके, गोया हर मख्लूक़5 के।
ऐ शजर!६ कर तू जुबां पैदा, बता नादान को,
बस तेरे जैसे मुक़ाबिल, ये भी हों मैदान में,
मत पनाहें ढूँढें अपनी, रूह की बाज़ार में,
नातावानाई ओ ज़ईफी7, का न हल ढूँढें 'जुनैद',
काट लें बस हौसले से, यह सज़ा ए उम्र क़ैद।

0-जरा-वस्था १-गर्मी की पीड़ा 3-आदम की औलाद ३-व्यवस्था ४-पत्ते एवं फल रहित ५ प्राणी वर्ग ६-पेड़ ७-बुढ़ाप काल


قدرت کا مشورہ


ادھ جلے ائے پیڑتو ہے ، عمر رفتہ کا شکار
قرب گرما جھیلتا ، تنہا کھڑا ہے دھوپ میں
ابن آدم کو ہے بیچینی ، کہ ان حالات میں 
ڈھونڈھتا پھرتا ہے پگلا مندر و مسجد کی چھاؤں ٠

جانتا ہے تو مگر، غالب ہے قدرت کا نظام 
زندگی دھرتی پہ جب ، ہوتی ہے بے بال و ثمر 
تب زمیں پر بار بن جاتا ہے ، ہر پیدا شدہ 
ہے زمیں بر حق کہ ڈھونے ہے اسے اگلے جنم 
تیرے میرے ، انکے ان کے ، گویہ ہر مخلوق کے ٠

ائے پیڑ! پیدا کر زبان ، سمجھا دے اس نادان کو 
بس ترے جیسے مقابل ، یہ بھی ہوں میدان میں 
مت پناہیں ڈھونڈھیں اپنی ، روح کی بازار میں 
ناتوانی اور بڑھاپے کا ، نہ حل ڈھونڈھیں 'جنید' 
کاٹ لیں بس حوصلے سے یہ سزاۓ عمر قید ٠ 

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