Friday, March 4, 2016

Junbishen 759


 ग़ज़ल

जीवन आपाधापी है, 
लोभी है ये पापी है .
 आपे से बाहर है वह, 
कहते हैं परतापी है. 
पहले जग को जीता था ,
बाद में तुर्बत नापी है. 
अपने तन का भक्षि है, 
कितना वह संतापी है. 
हिन्दू मुस्लिम ईसाई ,
जात बिरादर नापी है. 
धर्मों का विष त्यागा है, 
अपनी मन मदिरा पी है. 
दिल मुंकिर का कैसा है ?
हक की फोटो कापी है. 
*बोखालत=कंजूसी *केनाआतें=संतोष *कलंदरी=मस्त-मौला *''सवाब ओ गनीमत'' =पुण्य एवं लूट-पाट*सुखनवरी=वाक्-पुटता.

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