नज़्म
वसीयत नामः
मेरे बच्चो सही कहने की, मोहलत तुम नहीं लेना ,
ग़लत बातों में हाँ में हाँ की आदत तुम नहीं लेना .
जो मेहनत से मिले अमृत , जो मांगे से मिले पानी ,
जो छीना झपटी से आए , वह दौलत तुम नहीं लेना .
लक़ब तुमको ग़नी का मुफ़्त दे जाएँगे बे ग़ैरत ,
कभी भी मुफ़्त खोरों से ये शोहरत तुम नहीं लेना .
जो सीधे सादे और अनपढ़ बुजुर्गों के मुकाबिल हों ,
ज़मीं पर फेंकना , ऐसी ज़ेहानत तुम नहीं लेना .
छिपा है जो भी धरती में , अमानत है वो खिलक़त का ,
इसे लेकर ज़माने की अदावत तुम नहीं लेना .
यतीमों की किफ़ालत में , उधर भी है तमअ की बू ,
इधर ग़ासिब का तुरका है , अमानत तुम नहीं लेना .
पड़े मज़लूम को सर पे, उठा कर घर पे ले आना ,
किसी ज़ालिम के गोशे की, हिफ़ाज़त तुम नहीं लेना .
बड़ा आलिम है वह मसूमयत को खो चुका होगा ,
वहां पर जा के कम अक़्लो , हिक़ारत तुम नहीं लेना .
जरायम थे मेरे जायज़, मज़ालिम के ठिकानों पर ,
मुझे लड़ना है दोबारा , ज़मानत तुम नहीं लेना .
नमाज़ें बख्शवाएंगी, गुनहगारों को मह्शर में ,
गुनाहों से बचो मुंकिर , ये जन्नत तुम नहीं लेना .
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