प्रशंशनीय
प्रदर्शनी प्रकृति की, नहीं पूजनीय है ,
ये आपदा , विपदा भी, नहीं निंदनीय है ,
भगवान् या शैतान नहीं होती है क़ुदरत ,
जो कुछ मिला है इससे, वह प्रशंशनीय .
जल परी
शाम आई भर नहीं , ऊबने लगता है दिल ,
जाने क्यों गुम सी ख़बर , ढूँढने लगता है दिल ,
याद आती है उसे इक खूबसूरत जल परी ,
जाके पैमाने में फिर , डूबने लगता है दिल .
इबरत का नज़ारा
शमशान में जलती हुई, लाशों का नज़ारा,
या कब्र में उतरी हुई, मय्यत का इशारा,
देते हैं ये जीने का सबक़, अह्ल ए हवस को,
समझो तो समझ पाओ, कि कितना हो तुम्हारा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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