Friday, May 24, 2013

unbishen21

ढलान


हस्ती है अब नशीब१ में, सब कुछ ढलान पर,
कोई नहीं जो मेरे लिए, खेले जान पर,
ख़ुद साए ने भी मेरे, यूँ तकरार कर दिया,
सर पे है धूप, लेटो, मेरा क़द है आन पर।
१-ढाल


शायरी 



फ़िक्र से ख़ारिज अगर है शायरी , बे रूह है ,
फ़न से है आरास्ता , माना मगर मकरूह है,
हम्द नातें मरसिया , लाफ़िकरी हैं, फिक्रें नहीं ,
फ़िक्र ए नव की बारयाबी , शायरी की रूह है . 

वादा तलब 

नाज़ ओ अदा पे मेरे न कुछ दाद दीजिए ,
मत हीरे मोतियों से मुझे लाद दीजिए ,
हाँ इक महा पुरुष की है, धरती को आरज़ू ,
मेरे हमल को ऐसी इक औलाद दीजिए .

1 comment:

  1. खारदार शमशीरे-ज़न बड़ी गैर आबाद है..,
    फिर मेरी ज़मीन को कोई शमशाद दीजिए.....

    खारदार = कांटेदार
    शमशीरे-ज़न = तलवार चलाने वाली
    शमशाद = सुन्दर पेड़

    ReplyDelete