कोई नहीं जो मेरे लिए, खेले जान पर,
ख़ुद साए ने भी मेरे, यूँ तकरार कर दिया,
सर पे है धूप, लेटो, मेरा क़द है आन पर।
१-ढाल
शायरी
फ़िक्र से ख़ारिज अगर है शायरी , बे रूह है ,
फ़न से है आरास्ता , माना मगर मकरूह है,
हम्द नातें मरसिया , लाफ़िकरी हैं, फिक्रें नहीं ,
फ़िक्र ए नव की बारयाबी , शायरी की रूह है .
वादा तलब
नाज़ ओ अदा पे मेरे न कुछ दाद दीजिए ,
मत हीरे मोतियों से मुझे लाद दीजिए ,
हाँ इक महा पुरुष की है, धरती को आरज़ू ,
मेरे हमल को ऐसी इक औलाद दीजिए .
खारदार शमशीरे-ज़न बड़ी गैर आबाद है..,
ReplyDeleteफिर मेरी ज़मीन को कोई शमशाद दीजिए.....
खारदार = कांटेदार
शमशीरे-ज़न = तलवार चलाने वाली
शमशाद = सुन्दर पेड़