मुस्कुराहटें
बैटिंग---
क्या बात है, अकेले ही 'मुंकिर' खड़े हो तुम?
लगता है इस समाज से कस के लड़े हो तुम।
तफसीर1,तर्जुमा2 कि हो तारीख, चट चुके,
जितने ज़मीं से निकले हो उतने गडे हो तुम।
इब्लीस3 की तरह ही, खुदी के नशे में हो,
आदम की वल्दियत है, ये किस पे पड़े हो तुम?
मज़हब हैं ग्यारह, बारह किसी पर तो पसीजो,
दिल नर्म है, दिमाग़ से कितने कड़े हो तुम।
कैच- - -
लोगो ये कायनात4 तगय्युर पजीर5 है,
सदियों पुरानी रस्मे-कुहन6 पर अडे हो तुम।
ख़ुद अपनी रहनुमाई के काबिल नहीं हुए?
कब तक रहोगे गोद में। जल्दी बड़े हो तुम।
१-ब्याख्या २-अनुवाद ३-बड़ा शैतान ४-ब्रम्हांड ५-परिवर्तन शील ६-पुराणी रस्में
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