रुबाइयाँ
सद बुद्धि दे उसको तू , निराले भगवान्,
अपना ही किया करता है, कौदम नुक़सान,
नफ़रत है उसे, सारे मुसलमानों से,
पक्का हिन्दू है, वह कच्चा इंसान।
कफ़िर है न मोमिन, न कोई शैतां है,
हर रूप में, हर रंग में, बस इन्सां है,
मज़हब ने, धर्म ने, किया छीछा लेदर,
बेहतर है मुअतक़िद * नहीं जो हैवाँ है।
मज़हब है रहे गुम पे, दिशा हीन धरम हैं,
आपस में दया भाव नहीं है, न करम हैं,
तलवार, धनुष बाण उठाए दोनों,
मानव के लिए पीड़ा हैं, इंसान के ग़म हैं।
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