Friday, December 26, 2008

मेरी खुशियाँ

मेरी खुशियाँ


जा पहुँचता हूँ कभी डूबे हुए सूरज तक,

ऐसा लगता है मेरी ख़ुशियाँ वहीं बस्ती हैं,

जी में आता है,वहीं जा के रिहाइश कर लूँ ,

क्या बताऊँ कि अभी काम बहुत बाक़ी हैं।

मेरी  ख़ुशियाँ मुझे तन्हाई में ले जाती हैं,

क़र्ब ए आलाम1 से कुछ देर छुड़ा लेती हैं,

पास वह आती नहीं, बातें किया करती हैं,

बीच हम दोनों के इक सिलसिला ए लासिल्की2 है।

मेरी खुशियों की ज़रा ज़ेहनी बलूग़त3 देखो,

पूछती रहती हैं मुझ से मेरी बच्ची की तरह,

सच है रौशन तो ये तारीकियाँ ग़ालिब क्यूं हैं?

ज़िन्दगी गाने में सब को ये क़बाहत क्यूं है?

एक जुंबिश सी मेरी सोई खिरद पाती है,

अपनी लाइल्मी पे मुझ को भी मज़ा आता है,

देके थपकी मैं इन्हें टुक से सुला देता हूँ ,

इस तरह लोरियां मैं उनको सुना देता हूँ ----

"ऐ मेरी खुशियों! फलो,फूलो,बड़ी हो जाओ,

अपने मेराज के पैरों पे खड़ी हो जाओ,

इल्म आने दो नई क़दरें  ज़रा छाने दो,

साज़ तैयार है, नगमो को सदा१० पाने दो,

तुम जवाँ होंगी, बहारों की फ़िज़ा छाएगी,

ज़िन्दगी फ़ितरते आदम की ग़ज़ल जाएगी".

"रौशनी इल्मे नव११ की आएगी,

सारी तारीकियाँ मिटाएगी,

जल्दी सो जाओ सुब्ह उठाना है,

कुछ नया और तुमको पढ़ना है".


१- व्याकुळ २-वायर-लेस ३-बौधिक व्यसक्ता4-अंधकार ५ -विकार ६-अक्ल ७-अज्ञानता ८-शिखर ९-मान्यताएं१०-आवाज़ ११-नई शिक्षा

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