Friday, December 19, 2008

शक बहक


शक बहक 

यकीं
 
बहुत कर चुके हो यारो ,

इक मरहला1 है, गुमाँ2 को समझो .

यकीं है अक्सर तुम्हारी गफ़लत ,

खिरद3 के आबे-रवां को समझो .


अक़ीदतें और आस्थाएँ ,

यकीं की धुंधली सी रह गुज़र4 हैं .

ख़रीदती हैं यह सादा लौही5,

यकीं की नाक़िस दुकाँ को समझो .



-पड़ाव -अविश्वाश का उचित मार्ग -अक्ल -रल स्वभाव -हानि करक

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