शक बहक
यकीं बहुत कर चुके हो यारो ,
यकीं बहुत कर चुके हो यारो ,
इक मरहला1 है, गुमाँ2
को समझो .
यकीं है अक्सर तुम्हारी गफ़लत ,
खिरद3 के आबे-रवां को समझो .
अक़ीदतें और आस्थाएँ ,
यकीं की धुंधली सी रह गुज़र4 हैं .
ख़रीदती हैं यह सादा लौही5,
यकीं की नाक़िस दुकाँ को समझो .
१-पड़ाव २-अविश्वाश का उचित मार्ग ३-अक्ल ४-सरल स्वभाव ५-हानि करक
No comments:
Post a Comment