कुदरत की चोलियाँ
विज्ञान के विरुद्ध, हैं पुजारी की बोलियाँ,
विज्ञान के विरुद्ध, हैं पुजारी की बोलियाँ,
जो भर रहा है, दान के टुकड़ों से झोलियाँ,
जो बेचता है,जनता को धर्माथ गोलियाँ ,
छूती हैं जिनके पाँव को, निंद्रा में टोलियाँ,
जो मठ में दासियों की, उतारे हैं डोलियाँ,
हर रात है दीवाली, जिनकी रोज़ होलियाँ।
विज्ञान है मनुष्य के लक्छों में अग्र्क्षर,
वैज्ञानिकों को अपनी, कहाँ है कोई ख़बर,
जन्नत की आरजू है, न दोज़ख का कोई डर,
हुज्जत से, नफ़रतों से, सियासत से ख़ाली सर,
ईजाद कुछ नया हो, हैं इनकी ठिठोलियाँ,
क़ुदरत की खोलते हैं, नई रोज़ चोलियाँ।
No comments:
Post a Comment