कुफ़्र और ईमान
कुफ़्र ओ ईमान१-२दो सगे भाई,
सैकडों साल हुए बिछडे हुए,
हाद्साती३ हवा थी आई हुई,
एक तूफाँ ने इनको तोडा था।
कोहना क़द्रों4पे कुफ़्र था क़ायम,
इक खुदा की सदा लिए ईमां,
बस नज़रयाती इख्तिलाफ़5 के साथ,
ठन गई कुफ्र और ईमाँ में।
भाई भाई को क़त्ल करते थे,
बरकतें लूट की ग़नीमत7थीं,
कुफ़्र की देवियाँ लचीली थीं,
देवता मालो-ज़र लुटाते थे।
ज़द10 में थे एशिया व् अफ्रीक़ा,
हर मुक़ामी पे क़ह्र बरपा थी,
ऐसा ईमान ने गज़ब ढाया,
आधी धरती पे मौत बरसाया।
खित्ता, इक जमीं पे भारत था,
सख्त जानी थी कुफ़्र की इस पर,
कुफ़्र के साथ कुछ हुवा राज़ी।
सदियों ग़ालिब रहा मगर इस पर,
कुफ्र के आधे इल्तेज़ाम11के साथ,
कुफ़्र पहुँचा सिने बलूग़त को,
फ़िर ये जमहूर्यत की ऋतू आई।
कुफ़्रको कुछ ज़रा मिली राहत ,
और उसने नतीजा अख्ज़12किया,
क्यूं न ईमान की तरह हम भी,
जौर ओ शिद्दत13की राह अपनाएं।
मेरा भी सिर्फ़ एक मक्का हो,
काबा जैसा ही राम का मन्दिर,
बाबरी टूटे, कुफ़्र क़ायम हो,
उनका इस्लाम, अपना हो हिंद्त्व ,
सारे रद्दे-अमल14 हैं फ़ितरी15 से।
कुफ़्र में इख्तेलाफ़16 दूर हुए,
फ़ार्मूला ये ठीक था शायद,
उसकी कुछ जुज़वी कामयाबी है,
उसकी गुजरात में जवाबी है।
है लकुम-दीनकुम18 से अब मतलब,
भूले काफ़िर को क़त्ल करना अब।
अहल-ऐ-ईमां की बड़ी मुश्किल है,
आज मोहलिक१९ निज़ाम-कामिल२०,
कोई भाई भी पुरसा हाल नहीं,
करके हिजरत२१ वह कहाँ जाएँ अब।
है बहुत दूर मर्कज़े-ईमां22,
उसकी अपनी ही चूलें ढीली हैं,
हैं पडोसो में भाई बंद कई,
जिन के अपने ही बख्त23 फूटे हैं।
ईमाँ त्यागे अगर जो हट धर्मी,
कुफ्र वालों के नर्म गोशे24 हैं,
उनकी नरमी से बचा है ईमां,
वरना दस फ़ी सदी के चे-माने ?
बात 'मुंकिर' की गर सुने ईमां,
जिसकी तजवीज़25 ही मुनासिब है,
जिसका इंसानियत ही मज़हब है,
कुफ़्र की भी यही ज़रूरत है॥
1-काफिर आस्था २-मुस्लिम आस्था ३-दुर्घटना -युक्त ४-पुरानी मान्यताएं ५-दिरिष्ट -कौणिक ६-धर्म युद्ध
७-धर्म युद्ध में लूटा हुआ माल ८-जीविका-श्रोत ९-अबोध १०-लश्कर 10- nishana ११-चपेट १२-समझौता १३-निकाला
१४-ज़ुल्म,ज्यादती १५-प्रति-क्रिया १६-स्वाभाविक १७-विरोध १८-कुरानी लेख अंश
१९-तुहारा दीन तुहारे लिए,हमारा दिन हमारे लिए २०-हानि कारक २१-सम्पूर्ण जीवन शैली
२२स्वदेश त्याग २३-मक्का की ओर संकेत २४-भाग्य २५-कुञ्ज २६-उपाय .