ग़ज़ल
सुकूने क़ल्ब को, दिल की हसीं परी तो मिले,
तेरे शऊर को, इक हुस्ने दिलबरी तो मिले.
नफ़स नफ़स की बुख़ालत को ख़त्म कर देंगे,
तेरे निज़ाम में, पाकीज़ा रहबरी तो मिले.
क़िनाअतें तेरी, तुझ को सुकूं भी देदेंगी,
कि तुझ को सब्र, बशकले क़लन्दरी तो मिले.
जेहाद अब नए मअनो को ले के आई है.
तुम्हें ''सवाब ओ ग़नीमत'' से, बे सरी तो मिले.
वहाँ पे ढूँढा तो, बेहतर न कोई बरतर था,
फ़रेब खुर्दाए एहसास ए बरतरी तो मिले.
तू एक रोज़ बदल सकता है ज़माने को,
ख़याल को तेरे 'मुंकिर" सुख़नवरी तो मिले.
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*बोखालत=कंजूसी *केनाआतें=संतोष *कलंदरी=मस्त-मौला *''सवाब ओ गनीमत'' =पुण्य एवं लूट-पाट*सुखनवरी=वाक्-
غزل
سکون قلب کو دل کی حسین پری تو ملے
ترے شعور کو اک حسن دلبری تو ملے ٠
نفس نفس کی بخلعت کو ترک کر دینگے
ترے نظام میں پاکیزہ رہبری تو ملے ٠
قناعتیں تری تجھکو سکوں بھی دیدیں گی
کہ تجھ کو صبر بشکل قلندری تو ملے ٠
جہاد اب نیے معنوں کو لے کے آیا ہے
تمہیں ثواب و غنیمت سے بے سری تو ملے ٠
وہاں پہ ڈھونڈھا تو ، بہتر نہ کوئی برتر تھا
فریب خوردہ ے احساس برتری تو ملے ٠
تو ایک روز بدل سکتا ہے زمانے کو
خیال کو ترے منکر سخن وری تو ملے ٠
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