Wednesday, June 8, 2016

Junbishen 799



वसीयत नामः 

मेरे बच्चो सही कहने की, मोहलत तुम नहीं लेना ,
ग़लत बातों में हाँ में हाँ की आदत तुम नहीं लेना .

जो मेहनत से मिले अमृत , जो मांगे से मिले पानी ,
जो छीना झपटी से आए , वह दौलत तुम नहीं लेना .

लक़ब तुमको ग़नी का मुफ़्त दे जाएँगे बे ग़ैरत ,
कभी भी मुफ़्त खोरों से ये शोहरत तुम नहीं लेना . 

जो सीधे सादे और अनपढ़ बुजुर्गों के मुकाबिल हों ,
ज़मीं पर फेंकना , ऐसी ज़ेहानत तुम नहीं लेना . 

छिपा है जो भी धरती में , अमानत है वो खिलक़त का ,
इसे लेकर ज़माने की अदावत तुम नहीं लेना . 

यतीमों की किफ़ालत में , उधर भी है तमअ की बू ,
इधर ग़ासिब का तुरका है , अमानत तुम नहीं लेना . 

पड़े मज़लूम को सर पे, उठा कर घर पे ले आना ,
किसी ज़ालिम के गोशे की, हिफ़ाज़त तुम नहीं लेना . 

बड़ा आलिम है वह मसूमयत को खो चुका होगा ,
वहां पर जा के कम अक़्लो , हिक़ारत तुम नहीं लेना . 

जरायम थे मेरे जायज़, मज़ालिम के ठिकानों पर ,
मुझे लड़ना है दोबारा , ज़मानत तुम नहीं लेना . 

नमाज़ें बख्शवाएंगी, गुनहगारों  को मह्शर में ,
गुनाहों से बचो मुंकिर , ये जन्नत तुम नहीं लेना .


وصیت نامہ 

میرے بچو صحیح کہنے کی ، مہلت تم نہیں لینا 
غلط باتوں میں ، "ہاں میں ہاں" کی عادت تم نہیں لینا ٠ 

جو محنت سے ملے نعمت ، جو مانگے سے ملے پانی 
جو چھینا جھپٹی سے آے ، وہ دولت تم نہیں لینا ٠ 
(کبیر)
لقب تم کو غنی کا مفت ، دے جاینگے بے غیرت 
کبھی بھی مفت خوروں سے ، یہ دولت تم نہیں لینا ٠ 

جو سیدھے سادے اور ان پڑھ ، بزرگوں کو کریں قائل 
زمیں پر پھینکنا ، ایسی ذہانت تم نہیں لینا ٠ 

چھپا ہے جو بھی دھرتی میں ، امانت وہ ہے خلقت کی 
اسے لیکر زمانے کی ، عداوت تم نہیں لینا٠ 

پڑے مظلوم کو سر پہ ، اٹھا کر گھر میں لے آنا 
کسی ظالم کے گوشے میں ، حفاظت تم نہیں لینا٠

جرا یم تھے میرے جائز ، مظالم کے ٹھکانوں پر
مجھے لڑنا ہے دوبارہ ، ضمانت تم نہیں لینا ٠ 

نمازیں بخشواینگی ، گنہگاروں کو محشر میں 
گناہوں سے بچو 'منکر' یہ جنّت تم نہیں لینا ٠ 

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