वसीयत नामः
मेरे बच्चो सही कहने की, मोहलत तुम नहीं लेना ,
ग़लत बातों में हाँ में हाँ की आदत तुम नहीं लेना .
जो मेहनत से मिले अमृत , जो मांगे से मिले पानी ,
जो छीना झपटी से आए , वह दौलत तुम नहीं लेना .
लक़ब तुमको ग़नी का मुफ़्त दे जाएँगे बे ग़ैरत ,
कभी भी मुफ़्त खोरों से ये शोहरत तुम नहीं लेना .
जो सीधे सादे और अनपढ़ बुजुर्गों के मुकाबिल हों ,
ज़मीं पर फेंकना , ऐसी ज़ेहानत तुम नहीं लेना .
छिपा है जो भी धरती में , अमानत है वो खिलक़त का ,
इसे लेकर ज़माने की अदावत तुम नहीं लेना .
यतीमों की किफ़ालत में , उधर भी है तमअ की बू ,
इधर ग़ासिब का तुरका है , अमानत तुम नहीं लेना .
पड़े मज़लूम को सर पे, उठा कर घर पे ले आना ,
किसी ज़ालिम के गोशे की, हिफ़ाज़त तुम नहीं लेना .
बड़ा आलिम है वह मसूमयत को खो चुका होगा ,
वहां पर जा के कम अक़्लो , हिक़ारत तुम नहीं लेना .
जरायम थे मेरे जायज़, मज़ालिम के ठिकानों पर ,
मुझे लड़ना है दोबारा , ज़मानत तुम नहीं लेना .
नमाज़ें बख्शवाएंगी, गुनहगारों को मह्शर में ,
गुनाहों से बचो मुंकिर , ये जन्नत तुम नहीं लेना .
وصیت نامہ
میرے بچو صحیح کہنے کی ، مہلت تم نہیں لینا
غلط باتوں میں ، "ہاں میں ہاں" کی عادت تم نہیں لینا ٠
جو محنت سے ملے نعمت ، جو مانگے سے ملے پانی
جو چھینا جھپٹی سے آے ، وہ دولت تم نہیں لینا ٠
(کبیر)
لقب تم کو غنی کا مفت ، دے جاینگے بے غیرت
کبھی بھی مفت خوروں سے ، یہ دولت تم نہیں لینا ٠
جو سیدھے سادے اور ان پڑھ ، بزرگوں کو کریں قائل
زمیں پر پھینکنا ، ایسی ذہانت تم نہیں لینا ٠
چھپا ہے جو بھی دھرتی میں ، امانت وہ ہے خلقت کی
اسے لیکر زمانے کی ، عداوت تم نہیں لینا٠
پڑے مظلوم کو سر پہ ، اٹھا کر گھر میں لے آنا
کسی ظالم کے گوشے میں ، حفاظت تم نہیں لینا٠
جرا یم تھے میرے جائز ، مظالم کے ٹھکانوں پر
مجھے لڑنا ہے دوبارہ ، ضمانت تم نہیں لینا ٠
نمازیں بخشواینگی ، گنہگاروں کو محشر میں
گناہوں سے بچو 'منکر' یہ جنّت تم نہیں لینا ٠
****************
No comments:
Post a Comment