दोहे
माँ बाप भाई बहन, रिश्ते सब ब्योपार ,
पत्नी पुत्री पुत्र पर, करके देख उधर .
हाथन का फैलाए के , दीनेह खीस निपोर ,
कुत्ता भी शरमात है , जब मंगत है कौर .
तन की अग्नि से लड़ें , दिन भर जोगी राज ,
सपने को दोषी कहें , रात में हो जब काज .
खाते समय न बोलिए , मुल्ला जी फरमाएँ ,
पशुवन की ये विधि भली , मानव भी अपनाएँ .
श्रद्धेय जी का हुक्म है , श्रोता गण जब आएँ ,
जूता छाता बुद्धि को , बाहर ही रख आएँ
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