ईद की महरूमियाँ 1
कैसी हैं ईद की खुशियाँ, यह नक़ाहत२ की तरह,
जश्न क़र्ज़े की तरह, नेमतें क़ीमत की तरह।
ईद का चाँद ये, कैसी खुशी को लाता है,
घर के मुखिया पे, नए पन के सितम ढाता है।
ज़ेब तन कपड़े नए हों, तो खुशी ईद है क्या?
फ़िकरे-गुर्बा३ के लिए, हक४ की ये ताईद५ है क्या?
क़ौम पर लानतें हैं, फित्रा-ओ-खैरात -ओ-ज़कात६ ,
ठीकरे भीख की ठंकाए है, उमरा७ की जमाअत।
पॉँच वक्तों की नमाजें हैं अदा, रोजाना,
आज के रोज़ अज़ाफ़ी है सफ़र८ दोगाना।
इसकी कसरत से कहीं दिल में ख़ुशी होती है,
भीड़ में ज़िन्दगी, तनहा सी पड़ी होती है।
ईद के दिन तो, नमाज़ों से बरी करना था,
छूट इस दिन के लिए, मय-ब-लबी करना था।
नव जवाँ देव परी के लिए मेले होते,
अपनी दुन्या में दो, महबूब अकेले होते।
रक़्स होता, ज़रा धूम धडाका होता,
फुलझडी छूटतीं, कलियों में धमाका होता।
हुस्न के रुख़ पे, शरीयत९ का न परदा होता,
मुत्तक़ी१०, पीर11, फ़क़ीहों११, को ये मुजदा१२, होता,
हम सफ़र चुनने की, यह ईद इजाज़त देती,
फ़ितरते ख़ल्क़१३ को, संजीदगी फुर्सत देती।
ईद आई है मगर दिल में चुभी फांस लिए,
करबे१४ महरूमी लिए, घुट्ती हुई साँस लिए।
१-वनचित्ता २-कमजोरी ३-गरीबों की चिंता ४-ईश्वर 5-समर्थन ६-दान की विधाएँ ७-धनाड्य ८-ईद की नमाज़ को दोगाना कहते ९-धर्मं विधान १०-सदा चारी ११-बुजुर्ग 11-धर्म-शास्त्री १३-खुश खबरी १3-जीव प्रवर्ति14-वंचित की पीड़ा
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गरीब गुरबा का हर जलसा उफ्तादे-बर उम्मीद..,
ReplyDeleteदीनार की खनखन पे खनकती है ईद.....