नई सी सिन्फ़ ए सुख़न1 हो, नेअम2 की बात करो,
न झूट सच की, ख़ुशी की, न ग़म की बात करो।
न बैठ जाना कि मसनद3 है, सुलह कुल4 की ये,
खड़े खड़े ही दिलेरी की, दम की बात करो।
उतार आओ अक़ीदत को, साथ जूतों के,
हमारी बज़्म में, हक की, धरम की बात करो।
मुआमला है, करोड़ों की ज़िदगी का ये,
सियासतों के खिलाड़ी, न बम की बात करो।
सभी असासा5 वतन का है, हस्बे नव आईन6,
अमीन कौन है, इस पर भरम की बात करो।
ये चाहते हो, हमा तन ही गोश7 हो जाएँ,
हों उलझे गेसुए अरज़ी8, अदम9 की बात करो।
तलाशे सिद्क़ ए ख़ला10 कितने मक़नातैशी11 हैं,
न अब जनाब, ख़ुदा की, सनम की बात करो।
बहुत ही खून पिए जा रहे हैं ये "मुंकिर"
क़सम है तुम को जो दैरो हरम12 की बात करो।
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