ग़ज़ल
दुश्मनी गर बुरों से पालोगे,
ख़ुद को उन की तरह बना लोगे।
तुम को मालूम है मैं रूठूँगा,
मुझको मालूम है मना लोगे।
लम्स1 रेशम हैं दिल है फ़ौलादी,
किसी पत्थर में जान डालोगे।
मेरी सासों के डूब जाने तक,
अपने एहसान क्या गिना लोगे।
दर के पिंजड़े के ग़म खड़े होंगे,
इस में खुशियाँ बहुत जो पालोगे।
सूद दे पावगे न "मुंकिर" तुम,
क़र्ज़े ना हक़ को तुम लोगे।
1-स्पर्श
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