Monday, April 29, 2019

जुंबिशें - - - ग़ज़लयात


ग़ज़ल 

उफ़! दाम ए मग्फ़िरत1 में, बहुत मुब्तिला था ये,
नादाँ था दिल, तलाशे ख़ुदा में पड़ा था ये.

महरूम रह गया हूँ, मैं छोटे गुनाह से,
किस दर्जा पुर फ़रेब, यक़ीन ए जज़ा2 था ये.

पुर अम्न थी ज़मीन ये, कुछ रोज़ के लिए,
तारीख़ी वाक़ेओं में, बड़ा वक़ेआ का था ये.

मानी सभी थे दफ़्न, समाअत३ की क़ब्र में,
अल्फ़ाज़ ही न पैदा हुए, सानेहा था ये.

हर ऐरे गैरे बुत को, हरम से हटा दिए,
तेरा4 लगा दिया था, कि सब से बड़ा था ये.

'मुंकिर' पड़ा है क़ब्र में, तुम ग़म में हो पड़े,
तिफ़ली5 अदावतों का नतीजा मिला था ये.


 اُف! دام مغفرت میں بہت مبتلا تھا یہ
 ناداں تھا دل، تلاشِ خدا میں پڑا تھا یہ٠ 

محروم رہ گیا ہوں میں جھوٹے گناہوں سے 
کس درجہ پُر فریب یقینِ جزا تھا یہ٠  

پُر امن تھی زمین یہ کچھ روز کے لئے 
تاریخی واقعوں میں بڑا واقعہ تھا یہ٠ 

معانی سبھی تھے دفن ، سماعت کی قبر میں
الفاظ ہی نہ پیدا ہوئے، سانحہ تھا یہ٠ 

ہر عیرے غیرے بُت کو حرم سے ہٹادئے، 
تیرا لگا دیا تھا، کہ سب سے بڑا تھا یہ٠ 

منکر پڑا تھا قبر میں، تم غم میں تھے پڑے 
طِفلی عداوتوں کا نتیجہ ملا تھا یہ٠ 

3 comments:

  1. ये दीन की ख़ुदा की ख़िदमत से परेशां था..,
    ये दो गज़ कफ़नो-दफ़न के हक़ में कहाँ था..,
    रख के ज़ेरे-ख़ाक में तुझे कहेंगे चार आदमी..,
    ये खुद को हमारे दोषों पे नाहक छोड़ गया था.....



    इबलीस कहीं का.....

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  2. अब आप ही कहें ये शख्स हिन्दू के मुसलमाँ था.....

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