nazm
वक़्त ए अजल
ख़ामोश रहो, वक़्त अजल छेड़ न जाना ,
मत पढना पढाना, न कोई रोना रुलाना .
ठहरो, कि मुझे थोड़ा सा माज़ी में है जाना ,
बचपन की झलक, आए जवानी का ज़माना .
माँ बाप की शिफ्क़त, वो बुजुर्गों की मुहब्बत ,
झगड़े वो बहिन भाई के, वह प्यार की शिद्दत ,
दादी की तरफ़दारी, वो नानी की मुरव्वत ,
ख़ाला की तबअ की सी, मामूं की रिआयत .
स्कूल के दर्जात में, आला मैं बना था ,
आया जो जवाँ साल तो राजा मैं बना था ,
इक सुर्ख़ परीज़ाद का दूलह मैं बना था,
क्या खूब हुवा नाना ओ दादा मैं बना था ,
अब हल्का हुवा जाता हूँ, बीमार बदन से ,
छुट्टी हुई जाती है, अदाकार बदन से ,
मैं, मैं था बहुत दूर था, जाँदार बदन से ,
इस मैं ने बड़े ज़ुल्म किए यार बदन से .
तोहफ़े में मिली ज़ीस्त की सौग़ात विदा हो ,
आलिम हुवा मैं सच का, ख़ुराफ़ात विदा हो ,
मातम न तमाशा हो, मेरी ज़ात विदा हो,
संजीदा निगाहों से,ये बारात विदा हो .
وقت اجل
خاموش رہو ، وقت اجل چھیڑ نہ جانا
مت پڑھنا پڑھانا ، نہ کوئی رونا رلانا
ٹھہرو کہ مجھے تھوڑا سا ، ماضی میں ہے جانا
بچپن کی جھلک آے ، جوانی کا زمانہ
ماں باپ کی شفقت ، وہ بزرگوں کی محبت
جھگڑے وہ بہیں بھائی کے ، وہ پیار کی شدّت
دادی کی طرف داری ، وہ نانی کی مروت
خالہ کی طبع ماں سی ، وہ ماموں کی رعایت
*
اسکول کے درجات میں اعلیٰ میں بنا تھا
آیا جو جواں سال تو راجہ میں بنا تھا
اک سرخ پری زاد کا دولہ می بنا تھا
کیا خوب ہوا ، نانا و دادا میں بنا تھا
اب ہلکا ہوا جاتا ہوں بیمار بدن سے
چھٹی ملی جاتی ہے اداکار بدن سے ٠
میں میں تھا بہت دور تھا ، نادر بدن سے
*
تحفہ میں ملی زیست کی سوغات وداع ہو
درپیش صداقت ہے ، خرافات وداع ہو
ماتم نہ تماشہ ہو ، مری ذات وداع ہو
سنجیدہ نگاہوں سے ، یہ بارات وداع ہو ٠
No comments:
Post a Comment