Monday, October 3, 2016

Junbishen 754


नज़्म

मुस्लिम राजपूतों के नाम

ख़ुद को कहते हो, गुलामान ए रसूले-अरबी1,
हैसियत दूसरे दर्जे के लिए हैं अजमी2,
तीसरा दर्जा हरब३, रखता है 'मुंकिर', हरबी.
और फ़िर दर्जा-ऐ-जिल्लत4 पे हैं हिन्दी मिस्कीं5,
बरतरी६ को लिए, मग़रूर हैं काबा के अमीं७,
सोच है कैसी तुम्हारी ? भला कैसा है यकीं ?

हज से लौटे हुए हाजी से हक़ीक़त८ पूछो,
एक हस्सास९ से कुछ, क़र्ब ए हिक़ारत पूछो।

है वतन जो भी तुम्हारा, है तुम्हें उसकी क़सम,
खून में पुरखो की धारा है ?तुम्हें उसकी क़सम,
नुत्फ़े१० की आन गवारा है? तुम्हें उसकी  क़सम,
ज़ेहन का कोई इशारा है ? तुम्हें उसकी क़सम,

अपने पुरखों की ख़ता क्या थी भला, हिदू थे ?
क़बले इस्लाम सभी, हस्बे ख़ुदा हिन्दू थे।
ज़ेब११ देता ही नहीं, पुरखो की अज़मत१२ भूलो,
उनको कुफ़्फ़र१३ कहो, और ये बुरी गाली दो।

क़ौमे होती हैं नसब14 की, कोई बुनियाद लिए,
अपने मीरास१५ से पाई हुई, कुछ याद लिए,
तुम बहुत ख़ुश हो, बुरे माज़ी१६ की बेदाद१७ लिए,
अरबों की ज़ेहनी गुलामी18 की, ये तादाद लिए।

अपने खूनाब19 की, नुत्फ़े की तहारत20 समझो,
जाग जाओ, नई उम्मत21 की ज़रूरत समझो।

अज़ सरे नव22, नया एहसास जगाना होगा,
इक नए बज़्म२३ का, मैदान सजाना होगा।
इक नई फ़िक्र24 का, तूफ़ान उठाना होगा,
मादरे हिंद में ही, काबा बनाना होगा।

राम और श्याम से भी, हाथ मिलाना होगा,
नानको-बुद्ध को, सम्मान में लाना होगा,
दूर तक माज़िए नाकाम25 में जाना होगा,
इस ज़मी का बड़ा इन्सान बनाना होगा।

१-मुहम्मद-दास 2-अरब गैर अरब मुस्लिम देशों को अजम कहते हैं ,वहां के रहने वालों को अजमी अर्थात गूंगा कहते हैं जोकि हीन माने जाते हैं .ठीक ऐसा ही हिंदू शब्द अरबों का दिया हुआ है जिसके माने अप शब्द हैं जिस पर कुछ लोग गर्व करते हैं .३-सभी गैर मुस्लिम देश को मुस्लिम हरब कहते हैं ।वहां के बाशिंदों को हरबी यानी हरबा (चल बाज़ी )करने वाला. ४- अपमानित श्रेणी ५-भारतीय भिखारी (ये हमारे लिए अरबियों का संबोधन है ) ६-श्रेष्टता -पीढी७-न्यास धारी ८-सच्चाई १०-शुक्र ,वीर्य ११-शोभा १२-मर्यादा १३-मूर्ति-पूजक १४ १५-दाय १६-अतीत १७-ज़ुल्म १८-मानसिक दासता 19-मर्यादित रक्त २०-पवित्रता २१-वर्ग २२-नए सिरे से २३-सभा २४-चिंतन २५-असफल २६-अत

 راجپوت ٹھاکروں کے نام

خود کو کہتے ہو غلامان رسول عربی 
حیثیت دوسرے درجے کی لئے ہو اجمی 
تیسرا درجۂ حرب رکھتا ہے 'منکر' حربی 
اور پھر درجۂ ذلّت پہ ہیں ہندی مسکیں 
برتری کو لئے مغرور ہیں کعبہ کے امیں 
آسماں کیسا تمہارا ہے، یہ کیسی ہے زمیں 

حج سے لوٹے ہوئے حاجی سے صداقت پوچھو 
ایک حسساس سے کچھ قرب حقارت پوچھو 
ہے وطن جو بھی تمہارا ، تمہیں ہے اسکی قسم 
خون میں پرکھوں کی دھارا ہے ، تمہیں اسکی قسم 
نطفے کی شان گورا ہے ؟ تمہیں اسکی قسم 
ذہن کا کوئی اشارہ ہے ، تمہیں ہے اسکی قسم 

اپنے پرکھوں کی خطا کیا تھی ، بھلا ہندو تھے 
قبل اسلام سبھی حسب خدا ، ہندو تھے 
زیب دیتا ہی نہیں ، پرکھوں کی عظمت بھولو 
انکو کفّار کہو اور یہ بری گالی دو ٠

قومیں ہوتی ہیں نسب کی کوئی بنیاد لئے 
اپنے پرکھوں کی بلندی کی ، کوئی یاد لئے
اپنے میراث میں پائی ہوئی کچھ یاد لئے 
تم بڑے خوش ہو ، برے ماضی کی بیداد لئے 
جبر کا بوجھ لئے ، ظلم کی فریاد لئے 
 عربوں کی ذہنی غلامی کی یہ تعداد لئے
اپنے خوں ناب کی ، نطفے کی طہارت سمجھو 
جاگ جاؤ نئی امّت کی ضرورت سمجھو ٠

اپنے میں اک نیا احساس جگانا ہوگا 
اک نئے بزم کا ، میدان سجانا ہوگا 
اک نئی فکر کا ، طوفان اٹھانا ہوگا 
مادر ہند میں ہی کعبہ بنانا ہوگا
رام اور شیام سے بھی ہاتھ ملانا ہوگا 
نانک و بدھ کو سممان میں لانا ہوگا 
دور تک ماضی ے ناکام میں جانا ہوگا 
اس زمیں کا بڑا انسان بنانا ہوگا ٠ ٠ 

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