गज़ल
जब तक रवा रखोगे, मेरे साथ तुम बुख़ालत,
तब तक न कर सकूँगा, मेरे यार मैं क़िनाअत।
बेदारियां ये कैसी? कि खिंचता है सम्त ए माज़ी ,
बेहोशी ही भली थी, तेरा सोना ही ग़नीमत .
क़ुर्बानियों का जज़्बा, मज़ाहिब की तश्नगी है ,
खूराक इनको भाए, वफ़ादारों की शहादत .
लिपटा हुवा जवाँ है, मज़ारों के देवता से,
शर्मिंदा जुस्तुजू है, हमागोश है अक़ीदत .
मुमकिन नहीं की ख़ालिक़, अगर हो तो मुन्तक़िम हो,
होगा अगर जो होगा , माँ बाप की ही सूरत.
मेरी तरह ही तुम भी, हटा लोगे बोझ दिल का ,
क्या शय है फ़िक्र ए मुंकिर, ज़रा समझो इसकी क़ीमत.
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