ग़ज़ल
बात नाज़ेबा तुहारे मुंह की पहुंची यार तक,
अब न ले कर जाओ इसको, मानी ओ मेयार तक।
पहले आ कर खुद में ठहरो, फिर ज़रा आगे बढो,
ऊंचे, नीचे रास्तों से, खित्ताए हमवार तक।
घुल चुकी है हुक्म बरदारी तुमरे खून में,
मिट चुके हैं खुद सरी, खुद्दारी के आसार तक।
इक इलाजे बे दवा अल्फाज़ की तासीर है,
कोई पहुंचा दे मरीज़े दिल के गहरे गार तक।
रब्त में अपने रयाकारी की आमेज़िश लिए,
पुरसाँ हाली में चले आए हो इस बीमार तक।
मैं तेरे दौलत कदे की सीढयों तक आऊँ तो,
तू मुझे ले जाएगा अपनी चुनी मीनार तक।
कुछ इमारत की तबाही पर है मातम की फ़ज़ा,
हीरो शीमा नागा शाकी शहर थे यलगार तक।
उम्र भर लूतेंगे तुझ को मज़हबी गुंडे हैं ये,
फ़ासला बेहतर है इनसे आलम बेदार तक।
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