Wednesday, August 24, 2011

ग़ज़ल


आज़माने की बात करते हो,
 
दिल दुखाने की बात करते हो।
 
 
 
उसके फ़रमान में सभी हल हैं,
 
किस फ़साने की बात करते हो।
 
 
 
मुझको फुर्सत मिली है रूठों से,
 
तुम मनाने की बात करते हो।
 
 
ऐसी मैली कुचैली गंगा में,
 
तुम नहाने की बात करते हो।
 
 
"मेरी तकदीर का लिखा सब है,"
 
मार खाने की बात करते हो।
 
 
झुर्रियां हैं जहाँ कुंवारों पर ,
 
उस घराने की बात करते हो।
 
 
हाथ 'मुंकिर' दुआ में फैलाएं,
 
क़द घटाने की बात करते हो।

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