Thursday, May 30, 2019

ध्यान का ज्ञान


ध्यान का ज्ञान 

इक ध्यानी ध्यान में था, डूबा विधान में था,
इच्छा थी उसको पाऊँ, फिर दुनिया को दिखाऊँ.
लेकिन बड़ी थी मुश्किल, होना ये ग़र्क ए कामिल. 
कोई विचार आता, प्रयत्न टूट जाता.
उसने गुरु बनाया, जो उसके काम आया.

गुरुवर ने दक्षिना ली, भंग उसको फिर पिला दी.
उसको नशा जो आया, धीरे से खिलखिलाया.
बोला गुरु, मिला कुछ ? "हाँ और भी पिला कुछ"
जब पूरी चढ़ गई भंग, शागिर्द रह गया दंग.
प्रसाद गुड का खाता, लड्डू के मज़े पाता.

उठ कर वह नाच जाता, फिर तालियाँ बजाता.
जिसको वो ध्यान करता, वह सामने गुज़रता.
भगवान् पा चुका था, मुक्ति कमा चूका था.
ग़र्क ए कामिल -पूरी तरह डूबना 

 دھیان کا گیان 

اک گیانی گیان میں تھا ، ڈوبا ندان میں تھا 
اچھا تھی اسکو پاؤں ، پھر دنیا کو دکھاؤں 

لیکن بڑی تھی مشکل ، ہونا یہ غرق کامل 
کوئی وچار آتا ، پریتن ٹوٹ جاتا

اسنے گرو بنایا ، جو اسکے کام آیا 
گرو ور نے دکچھنا لی ، بھنگ اسکو پھر پلا دی

اسکو نشہ جو آیا ، دھیرے سے کھلکھلایا 
جب پوری چڑھ گئی بھنگ ، شاگرد رہ گیا دنگ 

پرساد گڑ کا کھاتا  ، لدڈو کا مزہ پاتا 
اٹھ کر وہ ناچ جاتا ، پھر تالیاں بجاتا، 

جسکو وہ دھیان کرتا ، وہ سامنے گزرتا 
بھگوان پا چکا تھا ، مکتی کما چکا تھا٠ 

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