Wednesday, July 10, 2019

क़तआत

क़तआत


ढलान 

हस्ती है अब नशेब मे, सर है ढलान पर,
कोई नहीं कि, मेरे लिए खेले जान पर,
ख़ुद साए ने भी मेरे, यूँ तक़रार कर दिया,
सर पे है तेरे धूप, मेरा क़द है आन पर.
नशेब=नीचे ,

ڈھلان
ہستی ہے اب نشیب میں ، سر ہے ڈھلان پر 
کوئی نہیں جو میرے لئے ، کھیلے جان پر 
خود ساۓ نے بھی میرے ، یوں تکرار کر دیا 
سررج ہے میرے سر پہ ، مرا قد ہے ان پر ٠ 


इबरत का नज़ारा 

शमशान में जलती हुई, लाशों का नज़ारा,
या कब्र में उतरी हुई, मय्यत का इशारा,
देते हैं ये जीने का सबक़, अह्ल ए हवस को,
समझो तो समझ पाओ, कि कितना हो तुम्हारा   
عبرت کا نظارہ

شمشان میں جلتی ہوئی ، لاشوں کا نظارہ 
یا قبر میں اتری ہوئی ، میّت کا اِشارہ 
دیتے ہیں یہ جینے کا سبق ، اہلِ ہوس کو 
سمجھو تو سمجھ پاؤ کہ ، ہو کتنا تمہارا٠


काफ़ 

यह काफ़ सवालों का, उठाए है पिटारा,
कब?कौन?कहाँ?कैसे?कितने? हैं गवारा,
आ जाए सवालों में अगर क्यों?या मगर क्यों?
चढ़ जाता है सुन कर इसे ठहरा हुवा पारा।
    
کاف
یہ کاف سوالوں کا اٹھاۓ ہے پٹارہ 
کب، کون، کہاں، کیسے، کتنے، ہیں گوارہ
 جاۓ سوالوں میں اگر کیون یا مگر کیوں ؟
چڑھ جاتا ہے سُن کر اسے ، ٹھہرا ہوا پارہ٠ 

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